रिश्ते अब इंस्टेंट नूडल्स क्यों बन गए हैं?

By :  Newshand
Update: 2025-10-06 16:26 GMT


रिश्तों की माइक्रोवेव पीढ़ी: त्वरित गर्माहट, त्वरित ठंडापन

स्वाइप के रिश्ते: जितनी जल्दी जुड़ते, उतनी जल्दी टूटते

रिश्ते कभी आत्मा का आलिंगन हुआ करते थे। नज़रों की गहराई में उतरकर, समय के ताने-बाने में धीरे-धीरे बुने जाते थे, जैसे कोई कारीगर महीन धागों से अनमोल कढ़ाई रचता हो। लेकिन आज की दुनिया माइक्रोवेव की रफ्तार में सिमट गई है—तुरंत, सुविधाजनक, और क्षणभंगुर। रिश्ते अब समय की गहराई में नहीं, टचस्क्रीन की सतह पर बनते हैं। एक बटन दबाओ, पल भर की गर्माहट पाओ। मगर जैसे ही वह गर्माहट फीकी पड़ती है, ठंडापन उतनी ही तेजी से दस्तक देता है। यह हमारी माइक्रोवेव पीढ़ी की कहानी है—जहाँ रिश्ते चमकते हैं, पिघलते हैं, और पल में बिखर जाते हैं।

आज का इंसान समय की भगदड़ में उलझा है। व्यस्तता ने हमें इस कदर जकड़ लिया है कि रिश्तों के लिए न वक्त बचा, न धैर्य। पहले रिश्ते विश्वास, समझ, और त्याग की नींव पर खड़े होते थे। दोस्ती थी रातभर की अनकही बातें, चाय की चुस्कियों में साझा सपने, और बिना बोले बँटे दर्द। प्यार था इंतज़ार की बेकरारी, चिट्ठियों की स्याही, और मिलन की तड़प। परिवार था एक छत तले हँसी-आँसुओं का मेल, हर सुख-दुख में एक-दूसरे का सहारा। लेकिन अब? दोस्ती इंस्टाग्राम की स्टोरी और व्हाट्सएप के इमोजी तक सिकुड़ गई। प्यार स्वाइप और कुछ डेट्स के बाद "मूव ऑन" का नाम बन गया। परिवार वीडियो कॉल्स और ग्रुप चैट्स में बिखर गया।

इस त्वरितता की जड़ हमारी जीवनशैली है। हमने सुविधा को रिश्तों का पर्याय बना लिया। डेटिंग ऐप्स ने प्यार को कैटलॉग में बदल दिया, जहाँ लोग प्रोफाइल्स को स्क्रॉल करते हैं, जैसे ऑनलाइन शॉपिंग हो। दोस्ती अब लाइक्स, कमेंट्स, और फॉलोअर्स की गिनती में सिमट गई। परिवार तक टू-डू लिस्ट का हिस्सा बन गया—जन्मदिन पर मैसेज, त्योहार पर कॉल, और साल में एक मुलाकात का वादा। रिश्ते अब मेहनत नहीं, बस एक बटन की दूरी माँगते हैं। मगर यही उनकी सबसे बड़ी कमज़ोरी है। माइक्रोवेव का खाना भले ही पल में तैयार हो, पर उसमें न ताज़गी होती है, न पोषण। वैसे ही, त्वरित रिश्ते शुरुआत में चमकते हैं, लेकिन उनकी गहराई खोखली रहती है।

प्यार में भी यही अधीरता हावी है। आज का प्यार माइक्रोवेव सा है—जल्दी गर्म, जल्दी ठंडा। कुछ मुलाकातें, कुछ चैट्स, और तारीफों का दौर, और लोग "सोलमेट" का तमगा सजा देते हैं। मगर जैसे ही पहला झटका लगता है—एक छोटी गलतफहमी, एक अनबन, या "वाइब्स" का न मिलना—लोग "ब्रेकअप" और "मूव ऑन" चुन लेते हैं। रिश्तों को संवारने की कोशिश, समझने की मेहनत, या माफ करने का धैर्य अब पुराना लगता है। विकल्पों की भीड़ ने रिश्तों को डिस्पोजेबल बना दिया। जब अगला "बेहतर" विकल्प एक स्वाइप दूर हो, तो कोई रिश्ता अनमोल क्यों लगे? यही विकल्पों की बाढ़ रिश्तों की गहराई को निगल रही है।

क्या यह सब इतना सरल है? क्या हम सचमुच इतने सतही हो गए हैं? सच यह है कि इंसान का दिल आज भी वही चाहता है—सच्चा जुड़ाव, अपनापन, और स्थायित्व। हम चाहते हैं कि कोई हमें बिना शर्त सुने, समझे, और हर कदम पर साथ दे। मगर हमारी आदतें, हमारी प्राथमिकताएँ, और हमारी तेज़ रफ्तार ज़िंदगी हमें रोकती है। हमने तुरंत संतुष्टि को इस कदर आत्मसात किया है कि इंतज़ार, मेहनत, और रिश्तों को वक्त देना हमें बोझ लगता है। हम गहरे रिश्ते चाहते हैं, मगर उनकी कीमत चुकाने को तैयार नहीं।

इस माइक्रोवेव पीढ़ी की सबसे बड़ी त्रासदी यही है—हम गर्माहट चाहते हैं, मगर उसे टिकने नहीं देते। दोस्ती, प्यार, या परिवार—सब में शुरुआती चमक जल्दी ठंडी पड़ जाती है। हम रिश्तों को फिर गर्म करने की कोशिश करते हैं—एक मैसेज, एक कॉल, या एक मुलाकात से। मगर जैसे माइक्रोवेव का खाना बार-बार गर्म करने पर अपनी ताज़गी खो देता है, वैसे ही रिश्ते भी बार-बार टूटने-जुड़ने में अपना मूल स्वाद खो देते हैं। नतीजा? एक खालीपन, जो न समझ आता है, न बयाँ होता है।

क्या रास्ता है? क्या हम इस माइक्रोवेव पीढ़ी के चक्रव्यूह से निकल सकते हैं? हाँ, बशर्ते हम अपनी प्राथमिकताएँ बदलें। रिश्तों को फिर से समय, धैर्य, और मेहनत की सौगात देनी होगी। तकनीक ने हमें जोड़ा है, मगर वह जोड़ सतही है। असली रिश्ता तब बनता है जब स्क्रीन की चमक छोड़कर हम एक-दूसरे की आँखों में झाँकें, मैसेज की जगह दिल से दिल की बात करें, और लाइक्स की बजाय विश्वास का आलिंगन दें। रिश्ते कोई इंस्टेंट रेसिपी नहीं—वे एक लंबी यात्रा हैं, जहाँ गलतियाँ, गलतफहमियाँ, और उतार-चढ़ाव स्वाभाविक हैं। मगर इन्हीं से पार पाने की कोशिश रिश्तों को अनमोल बनाती है।

हर रिश्ता परफेक्ट नहीं होता। दोस्ती में अनबन, प्यार में तकरार, और परिवार में मतभेद तो होंगे। लेकिन इन सबके बीच रिश्तों को सहेजने की जिद ही उन्हें अटूट बनाती है। माइक्रोवेव की गर्माहट पल भर में ठंडी पड़ जाती है, पर चूल्हे की आँच पर पकाया खाना समय माँगता है, देखभाल माँगता है, और बदले में वह स्वाद देता है जो दिल-ओ-दिमाग में बस्ता है। रिश्ते भी ऐसे ही हैं—उन्हें धैर्य, देखभाल, और प्यार की आँच चाहिए, जो समय के साथ और गहरी होती है।

आज हमें खुद से सवाल करना होगा—क्या हम रिश्तों को महज सुविधा की तरह देखना चाहते हैं, या उनकी गहराई को फिर से जीना चाहते हैं? क्या हम त्वरित चमक के पीछे भागकर स्थायी अपनापन खोना चाहते हैं? यह चुनाव कठिन है, क्योंकि यह हमारी आदतों और जीवनशैली को चुनौती देता है। मगर अगर हम ठान लें, तो रिश्तों की उस पुरानी रिवायत को जगा सकते हैं, जहाँ धैर्य, विश्वास, और गहराई ही सबसे बड़ी ताकत थी। माइक्रोवेव की चमक भले ही लुभाए, पर चूल्हे की आँच की गर्माहट ही रिश्तों को ज़िंदगी देती है। अब हमें चुनना है—क्षणिक चमक या चिरस्थायी रोशनी।

प्रो. आरके जैन “अरिजीत

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