योग दिवस या सोशल मीडिया शो?
उछलते आसन, झुलसते रिश्ते – योग का अधूरा सच
हर साल की तरह इस बार भी अंतरराष्ट्रीय योग दिवस(International Day Of Yoga) की आहट सुनाई दे रही है। सूरज की पहली किरण के साथ पार्कों में चटाइयाँ बिछ जाएंगी, लोग सूर्य नमस्कार की मुद्रा में कैमरे के सामने तन जाएंगे, और सोशल मीडिया पर "योग से निरोग" का शोर मच जाएगा। "फिट रहो, हिट रहो" के नारे हर दीवार, हर स्क्रीन पर चमकेंगे। इंस्टाग्राम पर योगासन की रील्स, ट्विटर पर "योग है तो जीवन है" के हैशटैग, और व्हाट्सएप स्टेटस पर "स्वस्थ जीवन की कुंजी" की बाढ़ आ जाएगी। लेकिन इस चमक-दमक भरे ‘योग-तमाशे’ में एक सवाल चुपके से खड़ा है, और वो ये कि क्या योग सिर्फ शरीर को मोड़ने-तोड़ने का खेल है, या उससे कहीं गहरा, कहीं ज्यादा ज़रूरी कुछ?
आज हम अनुलोम-विलोम से सांसें तो संवार रहे हैं, लेकिन ज़ुबान की आंधी में रिश्ते उजाड़ रहे हैं। कपालभाति से माथा तो चमक रहा है, पर वाणी की तलवारें कपाल चीरने को तैयार हैं। हम तन को तो लचीला बना रहे हैं, लेकिन मन की अकड़ और शब्दों की उग्रता को कौन सुधारेगा? घर हो, दफ्तर हो, या सोशल मीडिया का रणक्षेत्र – हर जगह शब्दों का ज़हर फैल रहा है। लोग ‘वाक्पटुता’ की होड़ में एक-दूसरे को नीचा दिखाने में जुटे हैं, लेकिन ‘वाक्संयम’ कहीं गायब है। टीवी पर नेताओं की जुबानी जंग, सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग की बमबारी, और घरों में छोटी-छोटी बातों पर तीखी तकरार – ये सब क्या दिखाता है? कि हम योग के नाम पर सिर्फ चटाई बिछा रहे हैं, लेकिन उसकी आत्मा को भूल गए हैं।
योग (Yog divas)का मतलब सिर्फ आसनों की जादूगरी नहीं है। ये कोई सर्कस नहीं, जहां आप अपनी पीठ को मोड़कर, पैर को सिर तक उठाकर तालियाँ बटोर लें। योग एक जीवनशैली है, एक सोच है, एक क्रांति है – जो तन के साथ-साथ मन और वाणी को भी साधती है। लेकिन हम कहाँ हैं? हम तो बस चटाई पर उछल-कूद कर, इंस्टा पर रील बनाकर और "योगा डे सेलिब्रेशन" का ढोल पीटकर खुश हो रहे हैं। हम सूर्य नमस्कार तो कर रहे हैं, पर दूसरों की संवेदनाओं को कुचल रहे हैं। हम पश्चिमोत्तानासन में कमर तो झुका रहे हैं, पर ज़ुबान से किसी का दिल तोड़ने में ज़रा भी नहीं हिचक रहे।
आज के दौर में शब्दों की ताकत को भूलना सबसे बड़ी भूल है। शब्द रिश्ते बनाते हैं, और शब्द ही रिश्ते तोड़ते हैं। एक सही शब्द किसी का दिन बना सकता है, और एक गलत शब्द किसी का जीवन उजाड़ सकता है। लेकिन हमारा ध्यान कहाँ है? हम तो बस अपने बाइसेप्स की साइज़ और सिक्स-पैक की चमक में खोए हैं। सोशल मीडिया पर लोग योग के नाम पर अपनी फिटनेस का ढिंढोरा पीट रहे हैं, लेकिन वही लोग एक कमेंट में किसी को ट्रोल करने से नहीं चूकते। नेताजी मंच पर योग की महिमा बखान रहे हैं, लेकिन अगले ही पल विरोधियों पर तीखा तंज कस रहे हैं। ये कैसा योग है, जो शरीर को तो लचीला बनाए, पर मन को कठोर और ज़ुबान को बेलगाम छोड़ दे?
योग का असली मकसद है संतुलन – तन, मन और वाणी का संतुलन। जैसे हर अंग के लिए एक आसन है, वैसे ही हर रिश्ते को जोड़ने के लिए एक सटीक, मधुर शब्द चाहिए। शरीर की चुस्ती तभी सार्थक है, जब ज़ुबान में संयम हो, विचारों में संवेदना हो, और व्यवहार में सौम्यता हो। लेकिन हमारी प्राथमिकताएँ उलट हैं। हम योग स्टूडियो में पसीना बहाने को तो तैयार हैं, पर मन की मैल साफ करने को कोई राज़ी नहीं। हम सूर्य को नमस्कार करने में मशगूल हैं, पर पड़ोसी की भावनाओं को सलाम करने का वक्त नहीं।
इस योग दिवस चटाई से आगे बढ़कर चेतना की ओर कदम बढ़ाएँ। योग को सिर्फ शरीर की कसरत नहीं, बल्कि सोच की सैर बनाएँ। सूर्य नमस्कार के साथ-साथ संवेदनाओं का अभिवादन करें। शब्दों को हथियार नहीं, सेतु बनाएँ – जो दिलों को जोड़े, न कि जख्म दे। एक आसन कम करें, पर एक मीठा शब्द ज़रूर बोलें। क्योंकि तन को साधना आसान है, लेकिन मन और वाणी को संवारना ही असली योग है।
ज़रा सोचिए, अगर हमारी ज़ुबान से निकला हर शब्द किसी को राहत दे, किसी का मन जीत ले, तो क्या हमारा समाज कितना खूबसूरत होगा? अगर हमारी वाणी में मधुरता हो, हमारे विचारों में शांति हो, और हमारे व्यवहार में संयम हो, तो क्या ये सच्चा योग नहीं होगा? योग का मतलब सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य नहीं, बल्कि सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य भी है। लेकिन हम इस दिशा में कितना सोचते हैं? हम तो बस चटाई बिछाकर, कुछ देर उछल-कूद करके, और सोशल मीडिया पर "योग डे" की पोस्ट डालकर अपनी ज़िम्मेदारी पूरी मान लेते हैं।
इस बार, योग दिवस को सिर्फ एक वार्षिक उत्सव न बनने दें। इसे एक मौका बनाएँ – अपने मन को शांत करने का, अपनी ज़ुबान को संयमित करने का, और अपने विचारों को शुद्ध करने का। योग को सिर्फ स्टूडियो या पार्क तक सीमित न रखें, इसे अपने घर, अपने दफ्तर, अपने समाज तक ले जाएँ। जब हमारी वाणी किसी को चोट न पहुँचाए, जब हमारे शब्द रिश्तों को जोड़ें, जब हमारे विचार दूसरों को प्रेरित करें – तभी हम कह सकते हैं कि हमने योग को सही मायनों में अपनाया है।
इस योग दिवस एक नया संकल्प लें। एक आसन कम करें, लेकिन एक अच्छा शब्द ज़रूर जोड़ें। अपनी ज़ुबान को विनम्र, अपने मन को निर्मल, और अपने समाज को संबल बनाएँ। क्योंकि योग सिर्फ चटाई पर नहीं, दिल और दिमाग में बसता है। योग वह नहीं जो शरीर को लचीला बनाए, बल्कि वह है जो मन को उदार और वाणी को अमृत बनाए। यही है शब्दों का योग, यही है सच्चा योग – जो हमें और हमारे आसपास की दुनिया को बेहतर बनाए। तो चलिए, इस योग दिवस, चटाई से उठकर चेतना की ओर बढ़ें, क्योंकि असली योग वही है, जो तन के साथ-साथ समाज को भी साधे।
न्यूज हैंड/प्रो. आरके जैन “अरिजीत