खेल के मैदान की हर धड़कन को शब्दों में ढालने वाले नायक
खेल के मैदान की हर धड़कन को शब्दों में ढालने वाले नायक
खिलाड़ियों के संघर्ष से समाज की प्रेरणा तक: पत्रकारिता का योगदान
खेल केवल मैदान (playground)पर जीत-हार का दस्तावेज़ नहीं, बल्कि यह मानवता के जुनून, संकल्प और एकता का प्रतीक है। खिलाड़ी अपने पसीने और मेहनत से इतिहास रचते हैं, लेकिन इस इतिहास को शब्दों में ढालकर दुनिया तक पहुँचाने का काम खेल पत्रकार करते हैं। चाहे वह क्रिकेट के मैदान पर आखिरी ओवर का रोमांच हो, किसी धावक का ओलंपिक पदक जीतने का गर्व हो, या किसी खिलाड़ी का चोट के बाद वापसी का साहस—ये पल पत्रकारों की लेखनी से ही जन-जन तक पहुँचते हैं। विश्व खेल पत्रकार दिवस, जो हर साल 2 जुलाई को मनाया जाता है, उन पत्रकारों को सम्मानित करता है, जिनकी कलम खेल की हर धड़कन को जीवंत करती है। यह दिन खेल पत्रकारिता के गौरव, चुनौतियों और सामाजिक प्रभाव पर विचार करने का अवसर है।
यह दिवस 1924 में पेरिस में स्थापित अंतरराष्ट्रीय खेल प्रेस संघ (एआईपीएस) (International Sports Press Association (AIPS))की स्मृति में मनाया जाता है। एआईपीएस का उद्देश्य खेल पत्रकारों (Sports journalists)को वैश्विक मंच प्रदान करना, उनके अधिकारों की रक्षा करना और पत्रकारिता के उच्चतम मानकों को कायम रखना है। एआईपीएस की 2024 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, यह संगठन अब 160 से अधिक देशों में सक्रिय है और 9,800 से ज्यादा पत्रकार इसके सदस्य हैं, जो खेल पत्रकारिता की व्यापक पहुंच और प्रभाव को रेखांकित करता है। यह दिन न केवल पत्रकारों के अमूल्य योगदान को सम्मानित करता है, बल्कि डिजिटल युग और बदलते मीडिया परिदृश्य में उनके सामने उभरती चुनौतियों पर भी प्रकाश डालता है।
आज खेल पत्रकारिता केवल स्कोर बताने या मैच के परिणामों की रिपोर्टिंग तक सीमित नहीं है; यह खेलों की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कहानियों को जीवंत रूप से बुनने का एक शक्तिशाली मंच है। एक खेल पत्रकार खिलाड़ियों के संघर्ष, उनकी मानसिक दृढ़ता और खेल के गहरे सामाजिक प्रभाव को उजागर करता है। मिसाल के तौर पर, 2024 पैरालंपिक में भारत की अवनि लेखरा ने पैरा-शूटिंग में स्वर्ण पदक हासिल कर न केवल एक खेल उपलब्धि दर्ज की, बल्कि एक ऐसी प्रेरक कहानी रची, जिसने लाखों दिलों को झकझोरा। खेल पत्रकारों ने उनकी इस यात्रा को महज समाचार नहीं, बल्कि साहस, समावेशिता और मानवीय जज्बे की एक प्रेरणादायी मिसाल के रूप में दुनिया के सामने पेश किया।
डिजिटल युग ने खेल पत्रकारिता (sports journalism)को अभूतपूर्व गति और वैश्विक पहुँच प्रदान की है, लेकिन इसके साथ जिम्मेदारियों का बोझ भी बढ़ा है। सोशल मीडिया, न्यूज़ एप्स और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स ने सूचनाओं को क्षणभर में दुनिया के कोने-कोने तक पहुँचाने का रास्ता खोला है, मगर तथ्यों की सत्यता और निष्पक्षता को बनाए रखना अब पहले से कहीं अधिक जटिल चुनौती है। एआईपीएस के 2024 के सर्वेक्षण में 72% खेल पत्रकारों ने स्वीकार किया कि सोशल मीडिया पर वायरल खबरों की दौड़ ने पत्रकारिता की गुणवत्ता पर असर डाला है। फिर भी, जो पत्रकार सत्य, संवेदनशीलता और नैतिकता को सर्वोपरि रखते हैं, वे खेल पत्रकारिता को नई ऊँचाइयों तक ले जा रहे हैं, प्रेरणा और विश्वसनीयता का नया मानदंड स्थापित करते हुए।
भारत में खेल पत्रकारिता ने हाल के वर्षों में अभूतपूर्व प्रगति हासिल की है। जहाँ पहले क्रिकेट का एकछत्र राज था, वहीं अब बैडमिंटन, कुश्ती, मुक्केबाजी और पैरा-खेल जैसे क्षेत्र भी सुर्खियों में चमक रहे हैं। 2024 पेरिस ओलंपिक में नीरज चोपड़ा ने भाला फेंक में रजत पदक जीतकर देश का मान बढ़ाया, और पत्रकारों ने उनकी कहानी को एक ग्रामीण पृष्ठभूमि से वैश्विक मंच तक की प्रेरक गाथा के रूप में बखूबी उकेरा। इसी तरह, सितंबर 2024 में भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी में चीन को 1-0 से हराकर रिकॉर्ड पांचवां खिताब जीता, जिसे पत्रकारों ने केवल एक खेल उपलब्धि नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता और सामूहिक गौरव का प्रतीक बनाकर प्रस्तुत किया। साथ ही, अन्नू रानी ने 2024 में भाला फेंक में रजत पदक जीतकर इतिहास रचा, और उनकी कहानी को पत्रकारों की संवेदनशील लेखनी ने ग्रामीण भारत से वैश्विक मंच तक पहुँचाकर लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनाया।
हालाँकि, खेल पत्रकारिता का यह सफर आसान नहीं है। सीमित संसाधनों, समय की तंगी और कॉर्पोरेट या राजनीतिक दबावों की छाया पत्रकारों के लिए सतत चुनौतियाँ खड़ी करती हैं। महिला खेल पत्रकारों को लैंगिक भेदभाव और सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दों का सामना करना पड़ता है। एआईपीएस की 2024 की रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक स्तर पर केवल 12% खेल पत्रकार महिलाएँ हैं, जो इस क्षेत्र में गहरी लैंगिक असमानता को उजागर करता है। इसके बावजूद, भारत में सुप्रिया नायर जैसी प्रेरक पत्रकारों ने खेल पत्रकारिता को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया है। उनकी तीक्ष्ण लेखनी न केवल खेलों को जीवंत करती है, बल्कि सामाजिक मुद्दों पर गहन चिंतन भी जगाती है।
खेल पत्रकारिता केवल सूचना का माध्यम नहीं, बल्कि समाज को प्रेरित करने वाली एक शक्तिशाली ताकत है। 2024 में जब भारतीय पैरा-बैडमिंटन खिलाड़ी मनोज सरकार ने विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता, तो पत्रकारों ने उनकी कहानी को एक प्रेरणादायक गाथा के रूप में प्रस्तुत किया, जिसने दिव्यांगजनों के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण को सकारात्मक दिशा में बदला। इसी तरह, 2025 में पत्रकारों ने क्रिकेट में डोपिंग और भ्रष्टाचार के गंभीर मुद्दों पर निडर खुलासे किए, जिससे खेल की शुद्धता और निष्पक्षता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान मिला। विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी (डब्ल्यूएडीए) की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, पत्रकारों की सतर्कता ने डोपिंग के 15% मामलों को उजागर करने में निर्णायक भूमिका निभाई। उनकी यह सजगता न केवल खेलों की विश्वसनीयता को बढ़ाती है, बल्कि समाज में नैतिकता और पारदर्शिता के मूल्यों को भी मजबूत करती है।
विश्व खेल पत्रकार दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि पत्रकारिता एक पवित्र मिशन है, जो सत्य, निष्पक्षता और संवेदनशीलता की नींव पर खड़ा है। यह वह सेतु है, जो खिलाड़ियों की अथक मेहनत और जुनून को दर्शकों के हृदय तक पहुँचाता है। आज, जब खेल एक वैश्विक उद्योग और कूटनीति का प्रभावशाली माध्यम बन चुके हैं, पत्रकारों की भूमिका पहले से कहीं अधिक गहन और अपरिहार्य हो गई है। वे न केवल खेलों की जीवंत कहानियाँ बुनते हैं, बल्कि समाज को प्रेरित करते हुए खेलों को चरित्र निर्माण और नैतिकता का प्रतीक बनाते हैं। उनकी लेखनी खेल के मैदान से परे जाकर सामाजिक मूल्यों को सशक्त करती है।
विश्व खेल पत्रकार दिवस पर हमें उन समर्पित खेल पत्रकारों को हृदय से नमन करना चाहिए, जो रात-दिन मैदानों, प्रेस कॉन्फ्रेंस और अपनी तीक्ष्ण लेखनी के माध्यम से खेल की आत्मा को जीवंत रखते हैं। उनकी कलम ने 2024 और 2025 में लक्ष्य सेन, अवनि लेखरा और अन्नू रानी जैसे खिलाड़ियों को न केवल नायकों के रूप में स्थापित किया, बल्कि लाखों युवाओं के दिलों में सपनों का बीज बोया और उन्हें हासिल करने की प्रेरणा दी। यह पत्रकारिता का वह अमर गौरव है, जो समय की सीमाओं को लांघकर खेल के हर रंग, हर भावना और हर संघर्ष को चिरस्थायी बनाता है—एक ऐसी शक्ति, जो खेल की धड़कनों को अनंत काल तक जीवित रखती है।
प्रो. आरके जैन “अरिजीत