पंजाब भाजपा फिसड्डी, कांग्रेस में गुटबंदी

न्यूज हैंड ब्यूरो
भले ही चुनाव आयोग द्वारा लुधियाना वेस्ट के उपचुनाव के लिए अभी तक कोई तारीख का ऐलान नहीं किया है लेकिन बढ़ती गर्मी के साथ सियासी दलों के उम्मीदवार अपनी चुनाव प्रचार मुहिम को तेज करते जा रहे है। हालांकि पहले ऐसी चर्चाएं आम थी कि चुनाव आयोग मई के अंत में उपचुनाव संपन्न करवा सकता है लेकिन अब इसके जून में होने के संकेत मिल रहे है। उपचुनाव जीतने के लिए सियासी दलों आप, कांग्रेस व शिअद द्वारा अपने अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे हुए है लेकिन भाजपा उम्मीदवार का चयन करने में फिसड्डी साबित हो रही है। जबकि कांग्रेस को गुटबंदी से जूझना पड़ रहा है।
भाजपा पर टिकी हुई है सबकी नजरें
मौजूदा सियासी समीकरणों की बात करें तो इस समय सबकी नजरें भाजपा पर टिकी हुई है कि आखिर भाजपा किसको अपना उम्मीदवार बनाकर चुनाव मैदान में उतारती है। क्या यह उम्मीदवार पार्टी का ही कोई लोकल या बाहरी स्टेट लीडर होगा या फिर पार्टी किसी सेलीब्रेटी या बड़े कारोबारी को टिकट से नवाजती है। असल में लुधियाना वेस्ट अधिकतर हिंदू बहुल एरिया है तथा हलके में भाजपा का अच्छा खासा आधार है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार एडवोकेट बिक्रम सिंह सिद्धू को यहां से 28107 वोट मिले थे। जोकि कुल वोटिंग का 24.20 फीसद था व भाजपा को 5.57 फीसद वोट की बढ़त रही थी। संसदीय चुनाव में यहां से भाजपा के उम्मीदवार रवनीत सिंह बिट्टू को बढ़त मिली थी। लोगों में यह आम चर्चा है कि हलके में प्रभावी वोट फीसद होने के बावजूद उम्मीदवार का ऐलान न कर पाना लोगों में भाजपा के प्रति गलत संदेश जा रहा है व इसके पीछे ग्रुपबाजी का आंकलन लगाया जा रहा है। लोकल लीडर इस सीट को किसी बाहरी नेता या दूसरे दल से आए शख्स को देने के हक में नहीं है। जबकि दूसरे दलों से आए नेता सीट पर विनेबिलिटी के अनुसार उम्मीदवार उतारने पर जोर दे रहे है। फिलहाल यह जरूर है कि भाजपा निर्णय लेने में जितनी देरी लगाएगी, उसका नुकसान उम्मीदवार को चुनाव प्रचार में हो सकता है।
कांग्रेस खेमेबंदी में फंसी
आप के बाद कांग्रेस ने भी अपने उम्मीदवार का ऐलान कर दिया था। लेकिन जिस प्रकार से पार्टी में खेमेबंदी देखने को मिल रही है। उससे कांग्रेस के टकसाली वर्कर निराशा में है। कांग्रेस के उम्मीदवार भारत भूषण आशू अपने स्तर पर चुनावी बैठकें कर रहे है। लेकिन जिस प्रकार से लुधियाना से लोकसभा सांसद व पार्टी स्टेट अध्यक्ष राजा वडिंग के साथ उनके छत्तीस का आंकड़ा होने की खबरें सामने आती है, उससे कांग्रेस पार्टी गुटबाजी से जूझती दिख रही है। हालांकि ऐसी भी तर्क दिया जा रहा है कि उपचुनाव का नोटिफिकेशन जारी होते ही सब नेता चुनाव में जुट जाएंगे। लेकिन प्रचार होर्डिंगों में एक दूसरे की फोटो न लगाना, कहीं न कहीं कांग्रेस के चुनाव प्रचार को नुकसान पहुंचाने वाले बन सकता है। स्टेट लेवल के बड़े नेता ही नहीं, अभी तक जिला स्तर के नेता भी पूरी तरह से खुलकर चुनावी बैठकों में नजर नहीं आ रहे है।
आप उम्मीदवार को मिल सकता है सियासी लाभ
भाजपा व कांग्रेस के ताजा समीकरणों का सीधा लाभ सत्तारूढ़ दल को मिल सकता है। पार्टी कैंडिडेट को जहां जल्दी चुनाव प्रचार में उतरने का लाभ मिला है, वहीं पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया व सीएम भगवंत मान द्वारा हलके में रैलियां व बैठकें करने से उनको अपना सियासी पलड़ा भारी करने का अवसर दे रहा है। आम चर्चा है कि सत्तारूढ़ होने के चलते संजीव अरोड़ा की सरकार ए दरबार में पूरी पूछ हो रही है। इसलिए हर कोई अपने काम करवाने के लिए उनके पास पहुंच बना रहा है। खुद अरोड़ा भी बार-बार प्रेस वार्ता बुलाकर लोगों के दशकों पुराने मसलों को हल करने का दावे करते दिख रहे है। अरोड़ा इस दौरान अपने राज्यसभा एमपी होते हुए किए कामों का रिपोर्ट कार्ड भी पेश कर रहे है। सियासी पंडितों का कहना है कि अरोड़ा की पूरी चुनावी कंपैन एक मैनेज तरीके से चलती दिख रही है। जोकि मतदाताओं पर सकारात्मक असर छोड़ रही है।
शिअद भी चुनावी समर में जुटा
आप व कांग्रेस के अपने अपने उम्मीदवारों के ऐलान के बाद शिअद ने एडवोकेट परोउपकार सिंह घुम्मन को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया था। जोकि चुनावी बैठकें कर रहे है। शिअद प्रधान सुखबीर सिंह बादल भी उनके हक में चुनाव प्रचार करने पहुंचे थे। फिलहाल मुखय टक्कर आप व कांग्रेस में ही बनी हुई है। भाजपा के उम्मीदवार घोषित करने के बाद सीट पर चुनावी तापमान पूरे शिखर पर पहुंच सकता है लेकिन जिस प्रकार से कांग्रेस व भाजपा में खेमेबंदी महसूस हो रही है, उससे साफ है कि इसका सीधा लाभ सत्तारूढ़ दल के कैंडिडेट संजीव अरोड़ा को मिल सकता है।