भारत में रजिस्टर्ड डाक का अंत केवल एक सेवा का अंत नहीं है, यह एक युग का अंत है।

अलविदा रजिस्टर्ड डाक — एक युग की ख़ामोश विदाई
लेखिका: डॉ. प्रियंका सौरभ/न्यूज हैण्ड
एक सितंबर दो हज़ार पच्चीस को जब भारत डाक की रजिस्टर्ड डाक सेवा औपचारिक रूप से समाप्त कर दी जाएगी(1 September 2025 is when the Registered Postal Service will be discontinued in India), तो संभवतः किसी समाचार पत्र के मुख्य पृष्ठ पर यह नहीं छपेगा, न ही किसी समाचार चैनल पर विशेष चर्चा होगी। यह समाचार जितना सामान्य प्रतीत होता है, उतना ही गहरा असर छोड़ता है — उस पीढ़ी पर, जिन्होंने वर्षों तक डाकिये की साइकिल की घंटी सुनकर अपने दिन की शुरुआत की। जिन्होंने पत्रों के माध्यम से रिश्तों को जिया और डाकघर की कतारों में खड़े होकर संवाद की प्रतीक्षा की।
रजिस्टर्ड डाक (Goodbye Registered Post)कोई साधारण सेवा नहीं थी। यह उन दिनों की गवाही थी जब हम कागज़ पर स्याही से अपने जज़्बातों को उकेरा करते थे। जब एक लिफ़ाफ़े में कई अनकही बातें, लंबा इंतज़ार और अनगिनत भावनाएँ समाहित होती थीं। जब एक पत्र, चाहे वह परिवार के किसी सदस्य का हो या सरकारी दस्तावेज़, केवल कागज़ का टुकड़ा नहीं होता था, बल्कि विश्वास का प्रतीक होता था — कि यह ज़रूर पहुँचेगा, सही हाथों में, सही समय पर।
रजिस्टर्ड डाक वह सेतु था, जो गाँव को शहर से, माँ को बेटे से, प्रेमिका को प्रेमी से, और नागरिक को शासन से जोड़ता था। वह न केवल संवाद का माध्यम था, बल्कि संबंधों को सुरक्षित रखने वाला प्रहरी भी था। उसकी विशेषता यह थी कि वह खोता नहीं था, वह भटकता नहीं था। उसका पंजीकरण उसकी सुरक्षा थी, और उसकी प्राप्ति की पावती एक तरह का भावनात्मक संतोष।
एक समय था जब डाकिया केवल संदेशवाहक नहीं, बल्कि घर का परिचित चेहरा होता था। उसकी आवाज़, उसकी साइकिल की घंटी और उसकी झोली में छिपे लिफ़ाफ़ों का इंतज़ार हर किसी को रहता था। कोई सरकारी पत्र हो, किसी मामा जी की मनी ऑर्डर, किसी दूर बैठे बेटे का समाचार — सब कुछ रजिस्टर्ड डाक के माध्यम से पहुँचता था। और जब पत्र मिलता, तो उसे खोलने से पहले उसे छूकर महसूस किया जाता था — उसके कागज़ की मोटाई, उसके रंग की गहराई और उस पर लगी स्याही की गंध — सबमें अपनापन होता था।
लेकिन अब समय बदल चुका है। तकनीकी प्रगति ने हमारे संवाद के तरीक़ों को पूरी तरह से बदल दिया है। आज मोबाइल फ़ोन, त्वरित संदेश सेवाएँ, सामाजिक माध्यम, और अंतर्जाल ने पारंपरिक पत्र-व्यवस्था को लगभग समाप्त ही कर दिया है। अब किसी को इंतज़ार नहीं रहता, सब कुछ पल में भेजा और पल में प्राप्त किया जाता है। ऐसे समय में भारत डाक द्वारा रजिस्टर्ड डाक को औपचारिक रूप से बंद करने और उसे स्पीड डाक में समाहित करने का निर्णय, समयानुकूल और आवश्यक तो है, परंतु भावनात्मक रूप से पीड़ादायक भी।
स्पीड डाक, निस्संदेह आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप एक बेहतर सेवा है। इसमें गति है, निगरानी है, तकनीकी दक्षता है। परन्तु उसमें वह आत्मीयता नहीं है जो रजिस्टर्ड डाक में थी। वह अपनापन, वह धीमा मगर विश्वसनीय संवाद, वह सादगी — अब इतिहास बन जाएगी।
रजिस्टर्ड डाक का अंत केवल एक सेवा का अंत नहीं है, यह एक युग का अंत है। वह युग जिसमें शब्दों को सहेजा जाता था, जिसमें उत्तर पाने के लिए दिन नहीं, सप्ताहों की प्रतीक्षा की जाती थी। जब एक उत्तर में प्रेम, सम्मान और भावनाओं की परतें होती थीं। आज हम भले ही एक क्लिक में संवाद कर सकते हैं, लेकिन उस संवाद में स्थायित्व और गहराई का अभाव है। हम संदेश तो भेजते हैं, पर भावनाएँ नहीं। हम पढ़ते तो हैं, पर समझते नहीं। रजिस्टर्ड डाक उस युग की अंतिम निशानी थी, जहाँ संवाद सिर्फ़ बात नहीं, एक भावना होता था।
हमारे पुराने संदूक़ों में आज भी ऐसी चिट्ठियाँ मिलती हैं — पीले पड़े कागज़, स्याही से भरे अक्षर, किनारों पर समय की छाप और भीतर वह सब कुछ जो किसी समय अनमोल था। वे चिट्ठियाँ अब केवल स्मृति हैं, किंतु रजिस्टर्ड डाक ने उन्हें आज तक सुरक्षित पहुँचाया। यह उसकी सबसे बड़ी सफलता है — कि उसने शब्दों को अमर बना दिया।
इस सेवा के बंद होने से एक भावात्मक सूत्र टूटेगा। यह वह सेवा थी, जिसने दूरी को भी एक बंधन बना दिया था। जिसने माँ के आँचल से बेटे तक, प्रेमिका की आँखों से प्रेमी तक, शिक्षक की सीख से छात्र तक — सबको जोड़ रखा था। अब स्पीड डाक आएगी — तेज़, सुविधाजनक, आधुनिक। परंतु उसमें वह ठहराव नहीं होगा, वह धैर्य नहीं होगा, वह प्रतीक्षा नहीं होगी जो रजिस्टर्ड डाक को विशेष बनाती थी।
आज हम तकनीकी दृष्टि से जितने सक्षम हुए हैं, उतने ही भावनात्मक रूप से खोखले भी हो गए हैं। संवाद तो अब भी होते हैं, पर उनमें आत्मा नहीं होती। रजिस्टर्ड डाक केवल चिट्ठी नहीं थी, वह आत्मा का दस्तावेज़ थी। अब जब वह विदा ले रही है, तो यह केवल प्रशासनिक निर्णय नहीं है — यह हमारी सांस्कृतिक विरासत का एक पृष्ठ बंद होना है।
रजिस्टर्ड डाक, तुमने केवल पत्र नहीं पहुँचाए, तुमने रिश्ते पहुँचाए। तुमने हमें जोड़ना सिखाया — शब्दों से, भावनाओं से, प्रतीक्षा से, और विश्वास से। तुम भले ही अब औपचारिक रूप से बंद हो जाओ, परंतु हमारी यादों में, हमारे पुराने संदूक़ों में, हमारे दिलों में तुम सदा जीवित रहोगी।
आज जब हम तुम्हें विदाई दे रहे हैं, तो यह विदाई नहीं, एक प्रणाम है — उस युग को, उस सादगी को, उस धैर्य को, उस अपनापन को, जिसे तुमने वर्षों तक अपने कंधों पर ढोया। अब भले ही डाकघर बदल जाएँ, डाकिए डिजिटल हो जाएँ, पत्र इतिहास बन जाएँ — परंतु तुम, रजिस्टर्ड डाक, हमारे लिए सदा अमर रहोगी।