लोकतंत्र का मूलभूत आधार खतरे

लोकतंत्र का भविष्य: तकनीक की रोशनी या अंधेरा?

स्वतंत्र इच्छा की कैद: चुनावी प्रक्रिया पर एआई का शिकंजा

लोकतंत्र का मूलभूत आधार खतरे में है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), जो कभी मानव प्रगति का स्वर्णिम प्रतीक थी, अब उसी लोकतंत्र की नींव को खोखला करने का हथियार बन चुकी है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव, जो जनता की सच्ची आवाज को सत्ता के शिखर तक ले जाते हैं, अब एआई-जनित डीपफेक, भ्रामक समाचारों और माइक्रो-टारगेटिंग के जाल में फंस चुके हैं। यह तकनीक न केवल मतदाताओं के मन को चुपके से प्रभावित कर रही है, बल्कि उनकी स्वतंत्र इच्छा को बंधक बनाकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को ही अपहरण कर रही है।





एआई की असाधारण शक्ति इसके डेटा विश्लेषण और वैयक्तिकृत सामग्री सृजन की क्षमता में निहित है। एक्स, फेसबुक और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया मंचों पर कार्यरत एल्गोरिदम यह तय करते हैं कि आपको क्या देखना है। ये एल्गोरिदम आपकी उम्र, रुचियों और राजनीतिक झुकाव का गहन विश्लेषण कर ऐसी सामग्री परोसते हैं, जो आपके विचारों को सूक्ष्म रूप से ढाल देती है। 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में कैंब्रिज एनालिटिका द्वारा 87 मिलियन फेसबुक उपयोगकर्ताओं के डेटा के दुरुपयोग का उदाहरण इसका जीवंत प्रमाण है। इस डेटा के आधार पर माइक्रो-टारगेटेड विज्ञापनों ने अनिर्णीत मतदाताओं को प्रभावित किया। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के अनुसार, इस हेरफेर ने 2-5% मतदाताओं के व्यवहार को बदला, जो एक अत्यंत करीबी चुनाव में निर्णायक सिद्ध हुआ। यह हेरफेर इतना परिष्कृत और सूक्ष्म है कि मतदाता को इसका आभास तक नहीं होता, फिर भी यह उनके निर्णयों को गुप्त रूप से नियंत्रित करता है।


डीपफेक तकनीक ने लोकतंत्र के लिए खतरे को और भी भयावह बना दिया है। एआई-जनित नकली वीडियो और ऑडियो इतने जीवंत और विश्वसनीय प्रतीत होते हैं कि सामान्य व्यक्ति उन्हें वास्तविकता से अलग करने में असमर्थ रहता है। 2024 के रोमानिया राष्ट्रपति चुनाव में एक डीपफेक ऑडियो, जो रूस-समर्थित प्रभाव अभियान का हिस्सा था, ने पहले दौर के मतदान को रद्द करने के लिए बाध्य किया। इसी तरह, 2023 में स्लोवाकिया के एक चुनाव में डीपफेक ऑडियो ने एक उम्मीदवार की छवि को कलंकित कर जनता का विश्वास तोड़ा। मिशिगन विश्वविद्यालय के शोध के अनुसार, 64% लोग डीपफेक को पहली नजर में वास्तविक मान लेते हैं। ये घटनाएँ न केवल उम्मीदवारों की प्रतिष्ठा को नष्ट करती हैं, बल्कि मतदाताओं के सत्य तक पहुँचने के मूलभूत अधिकार को ही कुचल देती हैं।


एआई-संचालित बॉट्स और स्वचालित अभियान लोकतंत्र के लिए एक और गंभीर चुनौती बनकर उभरे हैं। ये बॉट्स झूठी सूचनाओं को बिजली की गति से फैलाते हैं और कृत्रिम जन समर्थन का भ्रम रचते हैं। 2024 के भारतीय लोकसभा चुनाव में, एक्स पर वायरल हुए डीपफेक वीडियो और भ्रामक मीम्स ने मतदाताओं के बीच भारी भ्रम और अविश्वास को जन्म दिया। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में 64 देशों के चुनावों में एआई-जनित सामग्री ने जनमत को गहरे रूप से प्रभावित किया। ये बॉट्स न केवल सूचना तंत्र को दूषित करते हैं, बल्कि सामाजिक ध्रुवीकरण और अविश्वास को बढ़ावा देकर लोकतंत्र की एकता और अखंडता को चूर-चूर करते हैं।




माइक्रो-टारगेटिंग के माध्यम से एआई व्यक्तिगत डेटा का उपयोग कर मतदाताओं के मन को गुप्त रूप से नियंत्रित करता है, उनकी स्वतंत्र इच्छा को हथियार बना लेता है। 2022 के ब्राजील चुनाव में एक डीपफेक वीडियो, जिसमें एक पत्रकार को गलत पोल परिणाम बताते दिखाया गया, ने लुला के समर्थकों के बीच भ्रम और अविश्वास की आंधी मचा दी। ऑक्सफोर्ड इंटरनेट इंस्टीट्यूट के अनुसार, 2016 से 2024 तक 81 देशों में एआई-संचालित प्रचार अभियानों ने लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को प्रभावित किया। यह तकनीक मतदाताओं को केवल वही सामग्री दिखाती है, जो उनकी मौजूदा धारणाओं को मजबूत करती है या उन्हें चुपके से बदल देती है, जिससे निष्पक्ष सूचना का मूलभूत अधिकार नष्ट हो जाता है।

एआई ने गलत सूचना को एक खतरनाक हथियार में बदल दिया है, जो अब पहले से कहीं अधिक सस्ता और सहज हो गया है। जहाँ पहले जनमत को प्रभावित करने के लिए विशाल रैलियों और महंगे प्रचार अभियानों की आवश्यकता होती थी, वहीं अब महज कुछ हजार रुपये में सोशल मीडिया पर झूठ का तूफान खड़ा किया जा सकता है। 2023 में भारत में एक जांच ने खुलासा किया कि डिजिटल एजेंसियाँ 10,000 रुपये से भी कम में वायरल अभियान चला सकती हैं, जो छोटे और कम संसाधन वाले दलों को नष्ट करने की ताकत रखता है। यह लोकतंत्र को तकनीकी और वित्तीय शक्ति के चंगुल में जकड़ रहा है, जिससे जनता की आवाज दबने का खतरा मंडरा रहा है।

लोकतंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही अनिवार्य हैं, लेकिन एआई-आधारित प्रचार में ये गायब हैं। 2019 के यूरोपीय चुनाव में 53% फेसबुक विज्ञापनों में प्रायोजक की जानकारी नहीं थी। यह “अदृश्य प्रचार” निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को कमजोर करता है। इस खतरे से निपटने के लिए सख्त कदम जरूरी हैं। पहला, सरकारों को डिजिटल प्रचार के लिए स्पष्ट नियम बनाना होगा। यूरोपीय संघ का डिजिटल सर्विसेज एक्ट (2022) एक मिसाल है, जो सोशल मीडिया कंपनियों को गलत सूचना रोकने के लिए बाध्य करता है। भारत में भी ऐसे कानून चाहिए। दूसरा, हर डिजिटल विज्ञापन में प्रायोजक और उद्देश्य की जानकारी अनिवार्य हो। तीसरा, डिजिटल साक्षरता अभियान जरूरी हैं। भारत में केवल 38% लोग ऑनलाइन सामग्री की प्रामाणिकता परख पाते हैं।

वैश्विक सहयोग इस संकट से निपटने की रीढ़ है, क्योंकि इंटरनेट की सीमाहीन प्रकृति के कारण किसी एक देश के नियम नाकाफी हैं। 2024 में रूस और चीन से संचालित परिष्कृत अभियानों ने अफ्रीकी और एशियाई देशों के चुनावों को अपने नापाक इरादों का शिकार बनाया, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रियाएँ खतरे में पड़ गईं। यूनेस्को की “रेकमेंडेशन ऑन द एथिक्स ऑफ एआई” (2021) जैसे वैश्विक ढांचे इस दिशा में सशक्त कदम हैं, जो एआई के नैतिक उपयोग को बढ़ावा देते हैं। फिर भी, इन प्रयासों को और अधिक समन्वित और प्रभावी बनाने की आवश्यकता है, ताकि वैश्विक स्तर पर लोकतंत्र की रक्षा हो सके।

हालाँकि, सबसे बड़ी ताकत जनता के जागरूक और विवेकपूर्ण मन में निहित है। तकनीक चाहे कितनी भी उन्नत हो, लोकतंत्र का असली आधार नागरिकों की सूझबूझ और सजगता है। यदि नागरिक बिना सोचे-समझे सूचनाओं को स्वीकार करते रहेंगे, तो लोकतंत्र का ढाँचा चरमराने लगेगा। लेकिन यदि वे सवाल उठाएँ, तथ्यों की गहन जाँच करें और सच को झूठ से अलग करने का संकल्प लें, तो कोई भी एल्गोरिदम या कृत्रिम बुद्धिमत्ता उनकी स्वतंत्र इच्छा को दबा नहीं सकती। यह जागरूकता ही वह दीपक है, जो तकनीक के अंधेरे तूफान में लोकतंत्र की लौ को जलाए रखेगा।

एआई एक दोधारी तलवार है, यह मानवता के लिए अभूतपूर्व अवसरों का सृजनकर्ता है, मगर अनियंत्रित होने पर लोकतंत्र का काल बन सकता है। 2024 के वैश्विक चुनावों ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि समय तेजी से हाथ से निकल रहा है। केवल सख्त कानून, पूर्ण पारदर्शिता और जागरूक नागरिकों का अटल संकल्प ही लोकतंत्र की रक्षा कर सकता है। यदि हम अब भी नहीं चेते, तो जनता की स्वतंत्र इच्छा एल्गोरिदम के ठंडे, यांत्रिक जाल में कैद होकर एक भयावह भ्रम बन जाएगी, और लोकतंत्र का स्वर्णिम स्वरूप हमेशा के लिए मिट्टी में मिल जाएगा।

प्रो. आरके जैन “अरिजीत

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