भारत में अंगदान को लेकर सबसे बड़ी बाधा है जागरूकता की कमी और गलत धारणाएं।

एक ‘हां’ से बदल सकती हैं अनगिनत जिंदगियां
विश्व अंगदान दिवस: मृत्यु के बाद भी जीवन देने का संकल्प
जीवन का सबसे अनमोल उपहार क्या हो सकता है? वह क्षण, जब एक इंसान अपनी मृत्यु के बाद भी किसी के चेहरे पर मुस्कान बिखेर दे, किसी की धड़कनों को नया राग दे दे, किसी की आंखों में फिर से दुनिया की रंगत लौटा दे। विश्व अंगदान दिवस, जो हर साल 13 अगस्त को मनाया जाता है, हमें यही सिखाता है—करुणा, त्याग और मानवता की वह शक्ति, जो सीमाओं को तोड़कर जीवन को अमर बना देती है। यह दिन केवल एक तारीख नहीं, बल्कि एक आह्वान है—एक ऐसी पुकार, जो हमें याद दिलाती है कि हमारी एक छोटी-सी हां, किसी की जिंदगी को हमेशा के लिए बदल सकती है। भारत जैसे देश में, जहां लाखों लोग अंग प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा में सांसे गिन रहे हैं, यह दिवस हमें एकजुट होकर मिथकों को तोड़ने, जागरूकता फैलाने और मानवता के लिए एक कदम आगे बढ़ाने की प्रेरणा देता है।
अंगदान एक ऐसा नेक कार्य है, जो न केवल किसी की जान बचाता है, बल्कि मानवता के प्रति विश्वास को भी मजबूत करता है। यह वह पुल है, जो अनजान दिलों को जोड़ता है, जो मृत्यु को जीवन में बदल देता है। फिर भी, भारत में अंगदान की स्थिति चिंताजनक है। नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन (एनओटीटीओ) के अनुसार, हर साल करीब 1.8 लाख लोग गुर्दे की विफलता, 80,000 लोग यकृत की विफलता और 50,000 लोग हृदय रोगों के कारण प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा में हैं। इसके बावजूद, भारत में अंगदान की दर प्रति दस लाख लोगों पर केवल 0.86 दाता है, जो वैश्विक औसत से कहीं कम है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़े बताते हैं कि अंगों की कमी के कारण हर साल लाखों लोग असमय काल के गाल में समा जाते हैं। यह आंकड़ा न केवल एक सांख्यिकी है, बल्कि उन अनगिनत परिवारों की त्रासदी है, जो अपने प्रियजनों को खो देते हैं, सिर्फ इसलिए कि समय पर अंग उपलब्ध नहीं हो सका।World Organ Donation Day
भारत में अंगदान को लेकर सबसे बड़ी बाधा है जागरूकता की कमी और गलत धारणाएं(The biggest barrier to organ donation in India is lack of awareness and misconceptions.)। कई लोग मानते हैं कि अंगदान उनकी धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ है, जबकि हिंदू, इस्लाम, ईसाई, सिख और जैन जैसे सभी प्रमुख धर्म मानवता की सेवा को सर्वोच्च मानते हैं। उदाहरण के लिए, हिंदू धर्म में दान को परम पुण्य माना जाता है, और अंगदान को जीवन रक्षक दान के रूप में देखा जा सकता है। फिर भी, मिथक जैसे कि अंगदान से शरीर का अपमान होता है या यह अगले जन्म को प्रभावित करता है, लोगों को इस निर्णय से रोकते हैं। इसके अलावा, मृत्यु के बाद अंगदान के लिए परिवार की सहमति अनिवार्य है, और अक्सर भावनात्मक या सामाजिक दबाव के कारण परिवार इसकी अनुमति देने से हिचकते हैं। विश्व अंगदान दिवस का उद्देश्य इन मिथकों को तोड़ना और एक ऐसी संस्कृति विकसित करना है, जहां अंगदान को सम्मान और गर्व का प्रतीक माना जाए।
अंगदान की प्रक्रिया को समझना भी इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। जीवित अंगदान में व्यक्ति अपने गुर्दे या यकृत का हिस्सा दान कर सकता है, क्योंकि ये अंग पुनर्जनन की क्षमता रखते हैं। मृत्यु के बाद अंगदान में हृदय, फेफड़े, यकृत, गुर्दे, अग्न्याशय और आंखों जैसे अंग दान किए जा सकते हैं। मस्तिष्क मृत्यु (ब्रेन डेथ) के बाद अंगदान की प्रक्रिया सख्त चिकित्सकीय और कानूनी प्रोटोकॉल के तहत होती है, जो नैतिकता और पारदर्शिता सुनिश्चित करती है। भारत में ट्रांसप्लांट ऑफ ह्यूमन ऑर्गन्स एक्ट, 1994 इस प्रक्रिया को नियंत्रित करता है, और एनओटीटीओ जैसे संगठन अंग आवंटन को निष्पक्ष बनाते हैं। फिर भी, इस प्रक्रिया को और सरल करने की जरूरत है। यदि ऑनलाइन पंजीकरण को प्रोत्साहित किया जाए और परिवारों को पहले से इस निर्णय के बारे में जागरूक किया जाए, तो अंगदान की दर में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।
विश्व अंगदान दिवस उन प्रेरणादायक कहानियों को भी सामने लाता है, जो मानवता की ताकत को दर्शाती हैं। 2020 में, चेन्नई के एक युवक ने मस्तिष्क मृत्यु के बाद और महिदपुर, उज्जैन के विश्वास जवाहर डोसी ने अपने अंग दान किए, जिससे कई लोगों को नया जीवन मिला। ऐसी कहानियां हमें यह विश्वास दिलाती हैं कि एक व्यक्ति का निर्णय कई जिंदगियों को रोशन कर सकता है। फिर भी, भारत में अंगदान की कमी का एक बड़ा कारण है संगठित प्रणाली का अभाव। कई अस्पतालों में प्रत्यारोपण की सुविधाएं सीमित हैं, और ग्रामीण क्षेत्रों में तो यह लगभग न के बराबर है। इसके अलावा, प्रशिक्षित चिकित्सकों और तकनीकी संसाधनों की कमी भी एक चुनौती है। यदि सरकार और गैर-सरकारी संगठन मिलकर काम करें, तो इस कमी को दूर किया जा सकता है।
भारत में अंगदान(Organ donation) बढ़ाने के लिए स्पेन की ऑप्ट-आउट प्रणाली से प्रेरणा ली जा सकती है, जहां हर व्यक्ति स्वतः अंगदाता माना जाता है। भारत में यह लागू करना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन मध्यप्रदेश सरकार का 1 जुलाई 2025 से अंगदाताओं के पार्थिव शरीर को गार्ड ऑफ ऑनर देने का आदेश एक प्रेरक कदम है। युवाओं को स्कूल, कॉलेज और सोशल मीडिया के जरिए जागरूक किया जा सकता है। प्रभावशाली हस्तियां, धार्मिक नेता और सामुदायिक संगठन इस मुहिम को गति दे सकते हैं। सरकार को अंगदाताओं के परिवारों को आर्थिक सहायता और सार्वजनिक सम्मान जैसे प्रोत्साहन देना चाहिए, ताकि यह नेक कार्य सामाजिक गौरव का विषय बने और अधिक लोग आगे आएं।
विश्व अंगदान दिवस हमें यह सिखाता है कि जीवन का असली अर्थ है दूसरों के लिए जीना। यह वह दिन है, जब हम अपने डर और संकोच को पीछे छोड़कर मानवता के लिए एक साहसिक कदम उठा सकते हैं। प्रत्येक अंगदाता एक अनाम नायक है, जो अपनी मृत्यु के बाद भी दूसरों के जीवन में उजाला बिखेरता है। भारत, जहां करुणा और सेवा की परंपरा गहरी जड़ों में बसी है, वहां अंगदान को एक सामाजिक आंदोलन का रूप देना समय की मांग है। यदि हम एकजुट होकर इस दिशा में काम करें, तो वह दिन दूर नहीं जब हर जरूरतमंद को नया जीवन मिलेगा। यह दिवस केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि एक संकल्प है—एक ऐसा संकल्प, जो हमें जीवन की कीमत समझाता है और हमें दूसरों के लिए जीने की प्रेरणा देता है। इस विश्व अंगदान दिवस पर हम यह प्रतिज्ञा लें कि हम न केवल अपने लिए, बल्कि दूसरों के लिए भी जिएंगे, और एक ऐसी दुनिया बनाएंगे, जहां हर धड़कन में मानवता की गूंज हो।
प्रो. आरके जैन “अरिजीत”,