भारतीय संविधान पर उछलता जूता!!

नागपुर में सनातन जाप और संविधान पर उछलता जूता!!




आलेख : बादल सरोज

मजमून के मुकाबले जूते के चलने को अपने शेर में “बूट डासन ने बनाया, मैंने एक मजमूँ लिखा / मेरा मजमून रह गया डासन का जूता चल गया” में दर्ज करने वाले, पेशे से वकील रहे शायर अकबर इलाहाबादी को भी अंदाजा नहीं रहा होगा कि एक दिन उनका कहा मुल्क की सबसे बड़ी अदालत में अमल में लाया जाएगा। मगर ऐसा हो गया, संविधान का मजमून धरा रह जाएगा और डासन की जगह सनातन का जूता चल जाएगा। ‘सनातन का अपमान नहीं सहा जाएगा’ कहते हुए एक वकील ने ही आला अदालत के सबसे आला जज पर जूता उछाल दिया। वह कोई सरफिरा नहीं था, जैसा कि उसने बाद में कहा, वह अपने किये के कारणों के बारे में पूरी तरह आश्वस्त और स्पष्ट सनातनी था।

यह सचमुच में एक अत्यत गंभीर और चितित करने वाली बात है, किन्तु इसे सदर्भ से काटकर अलग-थलग करके देखने से इसकी जड़ तक नहीं पहुंचा जा सकता। यह जिस निरंतरता में है, उससे जोड़कर ही इसकी समग्रता में ही इसे समझा जा सकता है। इसलिए शुरुआत पिछले सप्ताह उजागर हुई खबरों से : ऐसी ख़बरें अनेक हैं, मगर यहाँ बानगी के लिए इनमे से सिर्फ चार पर नजर डालना काफी होगा :

रोहडू, हिमाचल प्रदेश :

एक 12 साल का दलित बच्चा सिकंदर एक दुकान से कुछ खाने की चीज खरीदने जाता है। दुकान में कोई व्यक्ति नहीं था, दुकान खाली थी। वह दुकानदार की तलाश में उसके घर के अंदर जाकर सामान मांगता है। दुकान मालकिन उस 12 साल के दलित बच्चे को अपने घर में देखकर गुस्से में फट पड़ती है, उसे दुत्कार कर भगा देती है। उसके बाद उस बच्चे के घर एक संदेश भेजा जाता है, तुम्हारे लड़के ने हमारे घर में घुसने का पाप किया है। इसका पश्चाताप करने के लिए एक बकरी भेंट करो। दलित बच्चे के मां-बाप बकरी देने से मना कर देते हैं। दुकान मालकिन उस बच्चे को ही बकरी बांधने की जगह बाँध कर बकरी न आने तक बंधक बना लेती है, उसे पीटा भी जाता है। जैसे-तैसे भागकर सिकंदर बाहर निकलता है और इस अपमान से आहत होकर आत्महत्या कर लेता है।





फ़तेहगंज, उत्तरप्रदेश :

फतेहगंज थाना क्षेत्र के जबरापुर गांव में दो दलित बुज़ुर्गों, भगत वर्मा (60) और कल्लू श्रीवास (70), पर कथित ऊंची जाति के लोगों का हमला होता है। इन बुजुर्गो का कसूर यह है कि अपने खेतों में काम करते-करते वे उधर से गुजरने वाले इन ‘बड़े लोगों’ को देख नहीं पाए और उनसे "राम-राम" नहीं कहा। हमलावर उन्हें लाठी-डंडों से पीटते है, चाकू से गोदते हैं, जातिसूचक गालियां देते है और जाते-जाते दक्षिणा के रूप में इनसे 500 रुपये छीनकर ले जाते है।

रायबरेली, उत्तर प्रदेश :

30 साल के एक दलित हरिओम वाल्मीकि की पीट-पीटकर कर हत्या कर दी जाती है और उसकी लाश ऊंचाहार गांव में रेलवे ट्रैक के पास फेंक दी जाती है। घटना सोशल मीडिया पर उस व्यक्ति की बेरहमी से पिटाई का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद सामने आती है। हरिओम फतेहपुर जिले के तारावती इलाके के पुरवा गांव के रहने वाले थे। यह अपनी पत्नी से मिलने जा रहे थे। मानसिक रूप से अस्वस्थ थे, इसलिए सही तरीके से बात नहीं कर पाते थे। ऐसे निरीह व्यक्ति को ड्रोन से चोरी करने लायक मानकर पुलिस की मौजूदगी में तब तक पीटा गया, जब तक उसकी मौत नहीं हो गयी। ख़बरों के मुताबिक़ पिटाई के दौरान बेहोशी की स्थिति में जब हरीओम ने राहुल गांधी का नाम लिया तो हमलावरों ने कहा कि ‘हम भी बाबा – योगी आदित्यनाथ के लोग हैं।’







महिसागर, गुजरात :

गांधीनगर के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज की चौथे साल की छात्रा दलित युवती रिंकू वानकर वीरपुर तालुका के अपने कस्बे में अपनी एक दोस्त के साथ गरबा कार्यक्रम में शामिल होने के लिए जाती है। उसे कथित रूप से खुद को ऊंचा मानने वाली युवतियां जातिसूचक गालियां देती हैं। “ये लोग हमारे बराबर नहीं हैं और हमारे साथ गरबा नहीं खेल सकते,” कहते हुए उसके बाल पकड़कर घसीटते हुए गरबा स्थल से बाहर निकाल देती हैं।

6 अक्टूबर को सर्वोच्च न्यायालय में उसके मुख्य न्ययाधीश बी आर गवई(Chief Justice B.R. Gavai) की ओर उछाला गया जूता इन्हीं घटनाओं की निरंतरता में देखा जाना चाहिए था। पहले की खबरों में इसे जूता फेंकने वाले वकील की धार्मिक भावनाओं से जुड़ा और स्वयं ईश्वर के कहने पर किया गया काम बताया गया। कहा गया है कि हमलावर मध्य प्रदेश के खजुराहो के एक धरोहर स्थल में भगवान विष्णु की जीर्ण-शीर्ण मूर्ति की पुनर्स्थापना की मांग करने वाली याचिका को ‘पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन’ बताते हुए जस्टिस गवई ने इसे पुरातत्व विभाग और राष्ट्रीय धरोहरों के संरक्षण से जुड़े नियमों का मामला मानते हुए खारिज करते समय कही गयी बात से दुखी था। सुनवाई के दौरान चलते-चलाते जस्टिस गवई ने टिप्पणी की थी कि ‘अगर आप कह रहे हैं कि आप भगवान विष्णु के प्रबल भक्त हैं, तो आप उन्ही की प्रार्थना और ध्यान क्यों नही करते।’ खुद को धर्मप्रेमी और विष्णु अनुरागी भक्त बताने वाले जिस वकील को सीजेआई की यह बात ‘सनातन का अपमान’ लगी, उसने पुराणों में लिखे विष्णु के किस्से पढ़े होंगे, रहीम का वह दोहा तो सुना ही होगा जिसमें वे ‘का रहीम हरि को घट्यो जो भृगु मारी लात’ की बात करते है। जाहिर है कि बंदे ने भृगु महाराज की लात और गवई की कही बात पर कम, उनकी जाति पर ज्यादा ध्यान दिया होगा।

हालांकि बाद में दिए गए इस वकील के बयानों से यह बात भी सामने आई है कि मसला विष्णु भर का नहीं था : वह विष्णु के आदित्यनाथ और नुपुर शर्मा जैसे आधुनिक अवतारों की अवहेलना किये जाने के न्यायालयीन दुस्साहस से भी नाराज था। उसे इस बात पर आपत्ति थी कि जस्टिस गवई ने योगी (आदित्यनाथ) जी द्वारा की जा रही बुलडोजर कार्यवाही का विरोध करने की हिम्मत दिखाई। प्रसंग यह है कि इस महीने की शुरुआत में मॉरीशस में ‘सबसे बड़े लोकतंत्र में कानून का शासन’ विषय पर सर मौरिस रॉल्ट मेमोरियल लेक्चर 2025 में बोलते हुए जस्टिस बीआर गवई ने कहा था कि भारत की न्याय व्यवस्था कानून के शासन से निर्देशित होती है, न कि ‘बुलडोजर के शासन’ से। ऐसा कहते हुए गवई ने अपने ही फैसले का हवाला दिया था, जिसमें ‘बुलडोजर न्याय’ की निंदा की गई थी। इस वकील की ‘धार्मिक भावनाएं’ सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नुपुर शर्मा के बयानों को “माहौल बिगाड़ने वाला” बताने और हल्द्वानी में रेलवे की ज़मीन पर एक ख़ास समुदाय द्वारा किये गए अतिक्रमण को हटाने की कोशिश पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन साल पहले रोक लगा देने से भी आहत थीं। उसे जल्लीकट्टू और दही हांडी प्रकरणों में सुप्रीम कोर्ट के रुख से भी शिकायत है और उसका मानना है ‘जब भी हमारे सनातन धर्म से जुड़ा कोई मुद्दा आता है, तो यह सुप्रीम कोर्ट उस पर कोई न कोई आदेश जारी कर देता है। उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए।’




यह सब उस वक़्त उसी सनातन के नाम पर हो रहा था – हरीओम वाल्मीकि की लाश तो ठीक उसी दिन 2 अक्टूबर को बरामद हो रही थी – जब राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ के 100वें वर्ष के दशहरा आयोजन में नागपुर में बोलते हुए सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत सनातन की दुहाई देते हुए दावा कर रहे थे कि : “हमारी सनातन, आध्यात्मिक, समग्र व एकात्म दृष्टि में मनुष्य के भौतिक विकास के साथ-साथ मन, बुद्धि तथा आध्यात्मिकता का विकास, व्यक्ति के साथ-साथ मानव समूह व सृष्टि का विकास, मनुष्य की आवश्यकताओं-इच्छाओं के अनुरूप आर्थिक स्थिति के साथ-साथ ही, उसके समूह और सृष्टि को लेकर कर्तव्य बुद्धि का तथा सब में अपनेपन के साक्षात्कार को अनुभव करने के स्वभाव का विकास करने की शक्ति है, क्योंकि हमारे पास सबको जोड़ने वाले तत्त्व का साक्षात्कार है।“ (कृपया ध्यान दें, यह हिंदी उन्हीं के द्वारा बोली गयी हिंदी है।)

यह भी बता रहे थे कि “हिंदू समाज इस देश के लिए उत्तरदायी समाज है, कि हिंदू समाज सर्व-समावेशी है। ऊपर के अनेकविध नाम और रूपों को देखकर, अपने को अलग मानकर, मनुष्यों में बंटवारा व अलगाव खड़ा करने वाली ‘हम और वे’ इस मानसिकता से मुक्त है और मुक्त रहेगा।“




वह कितना समावेशी है और कितना मन, बुद्धि का विकास करता है, इसके प्रमाण देते हुए वही सनातन रोहडू से फतेहगंज, रायबरेली, महिसार की वारदातों को अंजाम दे रहा था। देश के संविधान के सबसे बड़े केंद्र सर्वोच्च न्यायालय में जूता उछाल रहा था। ठीक यही वजह है कि इन घटनाओं को अलग-अलग नहीं, निरंतरता में – सनातन के अमल की निरंतरता में -- देखे जाने से ही समझा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में उछले जूते पर घंटों तक इन्तजार के बाद आई प्रधानमंत्री की लिजलिजी प्रतिक्रिया और बाकी मंत्रियों सहित पूरे कुनबे की खामोशी, इनके नियंत्रण वाले गोदी मीडिया – जो अब लश्करे नोएडा के नये नाम से मशहूर हो गया है – द्वारा जूता उछालने वाले वकील का महिमामंडन और उसके एजेंडे का अनुमोदन करते हुए अविरल प्रसारण कथनी और करनी के फर्क और जो कहते है, उसके ठीक उलट करने की संघ और भाजपा की आजमाई विधा का आचरण है।

जिस सनातन की दुहाई देते हुए ये सब कारनामे और बर्बरताएँ आज अंजाम दी जा रही हैं, वह सनातन वर्णाश्रम पर आधारित, जाति प्रथा और उसके आधार पर ऊंच-नीच यहाँ तक कि छुआछूत तक में यकीन करने, महिलाओं को शूद्रातिशूद्र मानने को धर्मसम्मत बताने वाली पुरातन व्याधि है, जिसका सही नाम ब्राह्मण धर्म है। वही ब्राह्मण धर्म, जिसके खिलाफ पिछले ढाई-तीन हजार वर्षों में भारत में दार्शनिक और धार्मिक विद्रोह होते रहे ; जिससे लड़ते-लड़ते जैन, बौद्ध, लोकायत धारा, सिख, शैव, शाक्त और भांति-भांति के वैष्णव जैसे अनेक धर्म और उत्तर-दक्षिण-पूरब-पश्चिम में लिंगायतों से लेकर गोरखनाथ जैसे अनेकानेक पंथ विकसित हुए। यही वह सांघातिक बीमारी है, जिसने इस देश में मनुस्मृति का अन्धेरा व्याप कर उसके आधार पर हाथ और दिमाग को एक दूसरे से काटकर भारत के विज्ञान, साहित्य, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास को अवरुद्ध करके रख दिया, सडांध पैदा दी।

इसे पहले भी कहा जा चुका है, किन्तु दोहराना और फिर से याद दिलाना जरूरी है कि यह वही जकड़न है, जिससे निजात पाने के लिए कबीर से लेकर रैदास, गुरु घासीदास से होते हुए राजा राममोहन राय, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने अपने तरीकों से जद्दोजहद की। जोतिबा फुले से पेरियार होते हुए अम्बेडकर तक ने निर्णायक चोटें की। ई एम एस नम्बूदिरिपाद और ए के गोपालन से होते हुए वाम आन्दोलन ने इसे सामाजिक सुधार के लिए किये संघर्षों से आगे बढाया और सामाजिक बदलाव की लड़ाई से जोड़ा। इन्हीं संघर्षों का असर था, जिसने भारत के संविधान के रूप में मूर्त आकार ग्रहण किया। जिसने भारत को यातना गृह की काल कोठरी से बाहर निकाल उसे एक सभ्य समाज बनने की दिशा में अग्रसर होने की पृष्ठभूमि तैयार की। यह बाद में 70 के दशक में देश की राजनीति में सामाजिक प्रतिनिधित्व में गुणात्मक परिवर्तन के रूप में दिखा।

यह जहां एक ओर कुख्यात हो गए हिंदुत्व की नई पैकेजिंग है, वहीं दूसरी ओर इन ढाई-तीन हजार वर्षों के वैचारिक संघर्षों की उपलब्धियों का नकार भी है। संविधान और उसमे दी गयी समता, समानता, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता का धिक्कार भी है। यह बर्बर असलियत को छिपाने का कपट है। बकौल सावरकर '"वर्ण व्यवस्था हमारी राष्ट्रीयता की लगभग मुख्य पहचान बन गयी है।” यह भी कि “जिस देश में चातुर्वर्ण नहीं है, वह म्लेच्छ देश है। आर्यावर्त नहीं है।" और आगे बढ़कर सावरकर इसे और स्पष्ट करते हैं कि "ब्राह्मणों का शासन, हिन्दू राष्ट्र का आदर्श होगा।" वे यह भी कहते हैं कि “सन 1818 में यहां देश के आखिरी और सबसे गौरवशाली हिन्दू साम्राज्य (पेशवाशाही) की कब्र बनी।” ध्यान रहे, यह वही पेशवाशाही है, जिसे हिन्दू पदपादशाही के रूप में फिर से कायम कर आरएसएस एक राष्ट्र बनाना चाहता है और इसी को वह हिन्दू राष्ट्र बताता है। भारत के इतिहास में कलंक के रूप में जानी जाने वाली यह पेशवाशाही क्या थी, इसे जोतिबा फुले की 'गुलामगीरी' या भीमा कोरेगांव की संक्षेपिका पढ़ कर जाना जा सकता है।

यही बात संघ के एकमात्र गुरु जी गोलवलकर ने कही थी कि " "ईरान, मिस्र, यूरोप तथा चीन के सभी राष्ट्रों को मुसलमानों ने जीत कर अपने में मिला लिया, क्योंकि उनके यहां वर्ण व्यवस्था नहीं थी। सिंध, बलूचिस्तान, कश्मीर तथा उत्तर-पश्चिम के सीमान्त प्रदेश और पूर्वी बंगाल में लोग मुसलमान हो गए, क्योंकि इन क्षेत्रों में बौद्ध धर्म ने वर्ण व्यवस्था को कमजोर बना दिया था। " इनका सनातन धर्म की बहाली का दावा वर्णाश्रम की बहाली के सिवा कुछ नहीं है।

जिस सनातन की ये दुहाई दे रहे हैं, वह सनातन क्या है और उसमे कितना सनातन है, यह बात भी कोई दबी-छिपी नहीं है। सनातन एक आधुनिक पहचान है, जो विविधताओं से भरी हिन्दू परम्परा के प्रभुत्वशाली ब्राह्मण धर्म में कुरीतियों के विरुद्ध हुए धार्मिक सुधार आंदोलनों के मुकाबले घनघोर पुरातनपंथी रूढ़ीवाद की पहचान के रूप में सामने आयी। बंगाल के नवजागरण सहित ब्रह्मोसमाज आन्दोलन, दक्षिण के जाति और वर्णाश्रम विरोधी मैदानी और वैचारिक संघर्षों, महाराष्ट्र के सामाजिक सुधारकों की मुहिमों और खासकर उत्तर भारत में मूर्तिपूजा, अंधविश्वास और एक हद तक जाति विरोधी आन्दोलन आर्य समाज के बरक्स असमानता, ऊंच-नीच और भेदभाव का धुर पक्षधर पुराणपंथ सनातन के नाम पर गिरोहबंद हुआ। 18वीं और 19वीं सदी में सनातनियों का सबसे बड़ा युद्ध जिस आर्य समाज के साथ हुआ था, उस आर्य समाज का तो नारा ही वेदों की ओर वापस लौटने का था। इसलिए सनातन धर्म (Sanatan Dharma)का वैदिक धर्म के साथ कोई रिश्ता होने का सवाल ही नहीं उठता।



जिस सनातन के नाम पर संविधान पर जूता उछाला गया है, उसी सनातन के नाम पर 1948 में महात्मा गांधी की हत्या की गयी थी। उसी के नाम पर चलने वाले संगठनों से जुड़े वे हत्यारे थे, जिन्होंने दाभोलकर, पानसारे, कुलबुर्गी और गौरी लंकेश को मार डाला था। उनकी ताजा भड़भड़ाहट की वजह यह है कि हिंदुत्व और हिन्दू की जगह सनातन का जाप कर उसी पुराने और त्याज्य पर नया मुलम्मा चढ़ाने की इस कोशिश को लोग समझने लगे हैं। भट्टी सुलगने के पहले ही समता, सामाजिक सुधार, लोकतंत्र और संविधान की हिमायती ताकतें उसे बुझाने के लिए खुद जाग चुकी हैं, औरों को भी जगा रही हैं। मगर यह काम जूता उछालने जितना आसान काम नहीं है। इस मुहिम को और तेज करने की जरूरत है और ऐसा इनके झूठ का खण्डन करके, भारत के सच को नीचे तक ले जा कर ही किया जा सकता है।

(लेखक 'लोकजतन' के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं। संपर्क : 94250-06716)

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