पहलगाम हमला: कटघरे में मोदी सरकार


अजय सिंह /अटल हिन्द

अफ़सोस कि पहलगाम हमला मसले पर राजनीतिक विपक्ष ने मोदी सरकार के आगे घुटने टेक दिये हैं और वह नरेंद्र मोदी सरकार के साथ खड़ा हो गया है।

पहलगाम हमले (22 अप्रैल 2025) को लेकर जिस तरह देश में बदला लो-बदला लो का अश्लील, अंधराष्ट्रवादी कोरस चलाया जा रहा है, वह दरअसल इस्लामोफोबिया(Islamophobia) (इस्लाम से डर/नफरत) का नया रूप है। इसके निशाने पर मुसलमान और कश्मीरी हैं और पाकिस्तान भी है

पाकिस्तान से ‘बदला लेना’ तो कुछ मुश्किल है, पर भारतीय मुसलमानों और कश्मीरियों से तो लिया ही जा सकता है! मुसलमानों और कश्मीरियों पर शारीरिक हमले शुरू भी हो गये हैं।

इस अंधराष्ट्र‌वादी कोरस के तीन मक़सद साफ़ दिखाई दे रहे हैं–

पहला: इस हमले की जिम्मेदारी/जवाबदेही से केंद्र में हिंदुत्व फासीवाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार और उसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पूरी तरह बचा ले जाना।

दूसरा: 2025 के अंत तक होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव को भाजपा के पक्ष में मोड़ देना।

तीसरा: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ/भाजपा का जो लक्ष्य है देश को हिंदू राष्ट्र बनाने का, उसके लिए माहौल को सरगर्म रखना।

एक और मकसद भी है: पाकिस्तान के खिलाफ युद्धोन्माद तेज करना।

अफ़सोस कि पहलगाम हमला मसले पर राजनीतिक विपक्ष ने मोदी सरकार के आगे घुटने टेक दिये हैं और वह नरेंद्र मोदी सरकार के साथ खड़ा हो गया है। इस मसले पर विपक्ष ने वही नैरेटिव (आख्यान) अपना लिया है, जिसे मोदी सरकार ने पैदा किया: कि ‘सुरक्षा में चूक’ हुई है जबकि मामला सिर्फ़ ‘सुरक्षा चूक’ तक सीमित नहीं है। इससे ज़्यादा गंभीर है। यह तथाकथित राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल भी नहीं है, जिसे लेकर, कश्मीर के संदर्भ में, ‘दिल्ली दरबार' की पार्टियों (पक्ष-विपक्ष) के बीच मिलीभगत रहती है।

22 अप्रैल 2025 को कश्मीर में पहलगाम के एक सैरगाह में सैर कर रहे सैलानियों पर अज्ञात बंदूकधारियों ने गोलियां चला कर 26 लोगों को मार डाला। मरने वालों में सभी पुरुष थे। जिस जगह यह घटना हुई, वहां उस वक़्त क़रीब दो हज़ार सैलानी मौजूद थे. लेकिन वहां दूर-दूर तक भारतीय सेना, अर्द्धसैनिक बलों और पुलिस का एक भी बंदा मौजूद नहीं था। गोलीबारी होने के करीब एक घंटा बाद घटनास्थल पर सेना और पुलिस पहुंची तब तक घायलों को अस्पताल पहुंचाने और बचे हुए लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने का काम स्थानीय मुसलमानों ने किया। अगर मौके पर स्थानीय मुसलमानों की मदद न मिल पाती, तो मरने वालों की तादाद और बढ़ सकती थी।

विपक्ष को इस मसले पर आक्रामक तरीके से मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा कर उससे सवाल पूछना चाहिए था।

विपक्ष को पूछना चाहिए था कि पहलगाम हमला कैसे, क्यों हुआ या होने दिया गया। इस हमले के लिए जिम्मेदार मानते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का इस्तीफा विपक्ष को मांगना चाहिए था (26 नवंबर 2008 के मुंबई हमले के समय ऐसे इस्तीफे हुए थे। तब केंद्र में कांग्रेस गठबंधन की सरकार थी)।

विपक्ष को मोदी सरकार से पूछना चाहिए था कि जब कश्मीर दुनिया के सबसे ज़्यादा सैन्यीकरण (militarized) क्षेत्रों में से है– जहां चप्पे-चप्पे पर हथियारबंद फौजी हैं– तब पहलगाम हमले के वक़्त एक भी फ़ौज वाला/पुलिस वाला मौके पर क्यों नहीं था। यह कश्मीर के लिए अकल्पनीय, असंभव बात है कि जहां 2000 लोगों का जमावड़ा हो, वहां एक भी फौजी वाला/पुलिस वाला न हो। यह किसी बड़ी पूर्व नियोजित साजिश की ओर इशारा कर रहा है, जिसकी जांच होनी चाहिए।

विपक्ष को मोदी सरकार से पूछना चाहिए था कि जब कुछ महीने बाद बिहार विधानसभा का चुनाव होना है तभी पहलगाम हमला क्यों हुआ। क्या इसका कोई तार पुलवामा हमले (फ़रवरी 2019) से जुड़ता है?

2019 में लोकसभा चुनाव (आम चुनाव) के तीन महीना पहले पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हमला हुआ था, जिसमें 40 सिपाही मारे गये थे। इस घटना का फायदा उठाते हुए– 'आपदा में अवसर' ढूंढते हुए– प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आक्रामक चुनाव प्रचार अभियान चलाया। नतीजा: भारी बहुमत से हिंदुत्व फासीवाद भारतीय जनता पार्टी केंद्र में फिर लौटी और नरेंद्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बने। पुलवामा ने नरेंद्र मोदी और भाजपा की नैया पार करा दी।

उस समय भी राजनीतिक विपक्ष ने मोदी सरकार के आगे घुटने टेक दिये थे और वह सरकार की हां-में-हां मिलाने वाले की भूमिका में खड़ा हो गया था।

पुलवामा हमला आज भी रहस्य बना हुआ है। छह साल बाद भी इसके बारे में केंद्र सरकार की ओर से जांच रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गयी– कि यह हमला क्यों हुआ, कैसे हुआ, किसने किया, कौन लोग थे इसके पीछे, कौन थे उनके मददगार।

पहलगाम में जो हमला हुआ, क्या वह पुलवामा हमले का नया संस्करण है?

(लेखक कवि और राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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