LIC को तो कुछ नहीं बिगड़ेगा अडानी मालामाल आम जनता दिवालिया ?

एलआईसी को अडानी का पक्ष लेने के लिए मजबूर किया मोदी सरकार ने

आलेख : थिरुमारन, अनुवाद : संजय पराते

यह बात सब लोग जानते है कि मोदी सरकार बड़े कॉर्पोरेट घरानों का पक्ष लेती है। यह भी सबको मालूम है कि अडानी समूह (Adani Group)इस आकर्षक अंदरूनी मंडली का हिस्सा है। इसकी पुष्टि वाशिंगटन पोस्ट(Washington Post) के हालिया खुलासे से होती है कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय(Union Finance Ministry) ने भारत की एक प्रमुख जीवन बीमा कंपनी, भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी)(Life Insurance Corporation of India) द्वारा अडानी समूह को बेलआउट देने की व्यवस्था की थी।

आंतरिक दस्तावेजों का हवाला देते हुए, इस अखबार ने बताया है कि इस साल मई में वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले वित्तीय सेवा विभाग ने एलआईसी(LIC) को अडानी समूह की संस्थाओं द्वारा जारी किए गए 3.9 अरब डॉलर (33,000 करोड़ रुपये) मूल्य के बॉन्ड खरीदने के लिए प्रेरित किया था। यह ऐसे समय में हुआ था, जब अडानी समूह की छवि पहले से ही न्यूयॉर्क स्थित शोध फर्म हिंडनबर्ग द्वारा किए गए खुलासे से धूमिल हो चुकी थी। यह फर्म अब बंद हो चुकी है। इस फर्म ने अडानी समूह पर बाजार के नियमों के गंभीर उल्लंघन का आरोप लगाया था। अब अडानी समूह को अमेरिकी कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा लगाए गए नए आपराधिक आरोपों का सामना करना पड़ रहा है। हिंडनबर्ग ने 2023 में आरोप लगाया था कि अडानी समूह कर्ज में काफी डूबा हुआ है और उसने अपने शेयरों के मूल्यों को कृत्रिम रूप से बढ़ाने के लिए, आपस में जुड़े पक्षों के बीच शेयर व्यापार के एक नेटवर्क का इस्तेमाल किया था, जिससे उसे और भी अधिक कर्ज जुटाने में मदद मिली। गौरतलब है कि ये गंभीर आरोप विदेशों में, कर-स्वर्ग (टैक्स हेवन) में स्थित कुछ "निवेशकों" की अस्पष्ट पहचान पर केंद्रित थे, जो प्रतिभूति बाजार नियमों का गंभीर उल्लंघन था।





हालाँकि इन आरोपों को बाज़ार नियामक, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने वित्त मंत्रालय की मदद से खारिज कर दिया था, फिर भी 2024 में अमेरिकी कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा अडानी समूह पर नए आरोप लगाए गए। इन एजेंसियों ने समूह के प्रमुख गौतम अडानी और उनके सहयोगियों पर रिश्वतखोरी, धोखाधड़ी और अन्य भ्रष्ट आचरण का आरोप लगाया। यही वह संदर्भ है, जिसमें भारतीय वित्त मंत्रालय ने एलआईसी से अडानी के बॉन्ड में निवेश करने का आग्रह किया।

उसी महीने, अडानी समूह की बंदरगाह सहायक कंपनी द्वारा जारी किए गए 58.5 करोड़ डॉलर (करीब 4,950 करोड़ रुपये) के बॉन्ड का एलआईसी एकमात्र ग्राहक बन गया। ये बॉन्ड मौजूदा कर्ज़ के पुनर्वित्त के लिए जारी किए गए थे।




वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, दस्तावेज़ों से पता चला है कि वित्त मंत्रालय, नीति आयोग और एलआईसी ने इस विचार-विमर्श में भाग लिया था। वित्त मंत्रालय ने बेशर्मी से इस दिग्गज का पक्ष लिया और उसे "दूरदर्शी उद्यमी" करार दिया। योजना का "रणनीतिक उद्देश्य" "अडानी समूह में विश्वास का संकेत" देना और उससे भी ज़्यादा, "अन्य निवेशकों की भागीदारी को प्रोत्साहित करना" था।

मंत्रालय ने एलआईसी को यहां तक सुझाव दिया कि अडानी के बॉन्ड, भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India)द्वारा उसकी ओर से जारी किए गए भारत सरकार के बॉन्ड की तुलना में काफ़ी ज़्यादा आकर्षक थे! एलआईसी पर लंबे समय से नज़र रखने वालों के लिए, यह संस्थान के निवेश संबंधी दिशा निर्देशों से से एक गंभीर विचलन है। निवेश संबंधी ये दिशा निर्देश काफी कठोर हैं, जो उच्च प्रतिफल की तुलना में सुरक्षा को तरजीह देते हैं और इसीलिए, इसके निवेश का एक बड़ा हिस्सा वैधानिक प्रतिभूतियों में, ज़्यादातर सरकारी ऋण में, था। यह आश्चर्यजनक नहीं था, क्योंकि एलआईसी करोड़ों गरीब और साधारण शेयर धारकों के लिए एक आश्रय स्थल है, जिनके पास "छोटी-सी" जीवन बीमा पॉलिसियाँ हैं, जिनके लिए सुरक्षा और संरक्षा ज़्यादा मायने रखती है, बजाय उच्च प्रतिफल के भ्रम से, जिसमें उच्च जोखिम भी शामिल है।




दरअसल, ऐसे समय में जब निवेशकों के बीच समूह की व्यवहार्यता गंभीर रूप से सवालों के घेरे में थी, सरकार ने एलआईसी को इन बॉन्ड्स में निवेश करने के लिए प्रेरित करने हेतु अपना ज़ोर लगाया। दरअसल, एलआईसी बाज़ार में सिर्फ़ एक और निवेशक नहीं थी, न ही ये बॉन्ड्स सिर्फ़ एक और व्यावसायिक मौका था। इसके बजाय, एलआईसी को एक प्रमुख निवेशक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था ताकि अन्य वित्तीय खिलाड़ियों – स्थानीय और विदेशी दोनों – को अडानी समूह की धन उगाहने वाली योजनाओं की ओर आकर्षित किया जा सके। वास्तव में, हुआ भी यही। एलआईसी द्वारा अडानी बॉन्ड्स खरीदने के एक महीने बाद, अमेरिका स्थित एथीन इंश्योरेंस ने अडानी समूह के बंदरगाह उद्यम द्वारा जारी किए गए 75 करोड़ डॉलर मूल्य के बॉन्ड्स खरीदे। मीडिया रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि मई 2025 में एलआईसी द्वारा बॉन्ड खरीद के बाद से अडानी समूह ने कम से कम 10 अरब डॉलर मूल्य के बॉन्ड जारी किए हैं। ऐसी खबरें हैं कि अडानी समूह के कम से कम 13,750 करोड़ रुपये (1.625 अरब डॉलर) मूल्य के बॉन्ड्स घरेलू निवेशकों द्वारा खरीदे गए हैं, जिनमें म्यूचुअल फंड, बीमा कंपनियां और बैंक शामिल हैं।





गौरतलब है कि अन्य निवेशकों में से कोई भी -- जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र का अग्रणी बैंक एसबीआई जैसी संस्था शामिल हैं, और न ही आईसीआईसीआई या एचडीएफसी जैसी निजी संस्थाएं -- के पास ऐसा निवेश कोष है, जो एलआईसी का मुकाबला कर सके। एलआईसी का जीवन कोष -- वह विशाल पूल, जिसमें बीमा प्रीमियम आता है और जिससे सभी देनदारियों को पूरा किया जाता है -- मार्च 2024 में 46 लाख करोड़ रुपये का था। भारत में कोई भी भारतीय वित्तीय संस्थान (Indian Financial Institutions)या दुनिया भर में कोई भी जीवन बीमाकर्ता एलआईसी जितना वजन नहीं रखता है। यह कोष, जो पिछले कुछ वर्षों में लगभग 10% सालाना की दर से बढ़ रहा है, वही एलआईसी को बाजार में ताकत प्रदान करता है। इस प्रकार, जब एलआईसी जैसी संस्था को सरकार द्वारा अडानी बॉन्ड में निवेश करने के लिए मजबूर किया जाता है, तो अन्य निवेशक जो शुरू में अनिच्छुक थे, अब अडानी समूह की इसी तरह की पेशकशों के लिए आकर्षित हो रहे हैं।

इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है कि एलआईसी ने वाशिंगटन पोस्ट की खबर का खंडन किया है और इस अखबार द्वारा कथित योजना में उसकी भागीदारी दिखाने वाले किसी भी दस्तावेज़ के अस्तित्व से इनकार किया है। उसने दावा किया है कि उसके निवेश पूरी तरह से उसके बोर्ड के फैसलों पर आधारित थे।




भारतीय व्यावसायिक मीडिया ने बड़े पैमाने पर अडानी और मोदी का पक्ष लिया है। गौरतलब है कि एलआईसी के फैसले को सही ठहराने की हर संभव कोशिश करने के बावजूद, इसने सबसे अहम इस सवाल को काफी हद तक नज़रअंदाज़ कर दिया है : भारत की सबसे बड़ी वित्तीय संस्था के व्यावसायिक फैसलों का निर्देशन सरकार को क्यों करना चाहिए? यह कहना कि अडानी समूह, जो अब भारतीय उद्योग के बड़े हिस्से -- बंदरगाहों, सड़कों, हवाई अड्डों, सीमेंट और अब डेटा सेंटरों (गूगल के सहयोग से) में एक प्रमुख खिलाड़ी है -- में एलआईसी का निवेश व्यावसायिक रूप से समझदारी भरा है, बिल्कुल बेतुका है।

इसी तरह यह तर्क भी दिया जाता है कि अडानी समूह में एलआईसी का निवेश आईटीसी, टाटा या रिलायंस समूहों में उसके निवेश का एक अंश मात्र है। लेकिन ये अन्य समूह काफी पुराने हैं और इन संस्थाओं में एलआईसी का निवेश काफी लंबी अवधि में किया गया है। इसके विपरीत, अदाणी समूह का तीव्र उदय 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के साथ हुआ। चूँकि यह हर मोड़ पर घोटालों से घिरा रहा है, इसलिए लंबी अवधि में इस तरह के विकास की स्थिरता पर संदेह करने के लिए हर वह कारण मौजूद है, जो एलआईसी जैसे निवेशक के लिए रुचिकर होगा। जीवन बीमाकर्ता आमतौर पर अपनी दीर्घकालिक देनदारियों के अनुरूप दीर्घकालिक निवेश चाहते हैं। व्यावसायिक मीडिया हमें यह विश्वास दिलाना चाहता है कि ये एलआईसी के लिए केवल एक अच्छा व्यावसायिक मौका था। इसके विपरीत, ऐसे निवेशों से उत्पन्न दीर्घकालिक जोखिम और करोड़ों भारतीय पॉलिसीधारकों से किए गए अपने वादे को पूरा करने की उसकी क्षमता ही एलआईसी के लिए प्रासंगिक हैं।

मोदी सरकार ने अडानी समूह के मामलों की किसी भी समन्वित जाँच को लगातार रोका है। अडानी समूह पर लगे आरोपों में कई तरह के उल्लंघन शामिल हैं – नकली बिलिंग से लेकर बाज़ार नियमों के गंभीर उल्लंघन तक के। यह ताज़ा मामला है, जब एक प्रमुख केंद्रीय मंत्रालय ने देश के सबसे बड़े वित्तीय संस्थान को पॉलिसीधारकों की भावी पीढ़ियों के धन को अडानी समूह में निवेश करने का निर्देश दिया है। यह एक ऐसा कारण है कि बड़े व्यवसायों और सरकार चलाने वालों के बीच सांठगांठ को तोड़ने के लिए एक व्यापक जाँच ज़रूरी है। बेहतर होगा कि यह जांच एक संयुक्त संसदीय समिति द्वारा की जाएं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। अनुवादक अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं। संपर्क : 94242-31650)

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