कारगिल युद्ध केवल सैनिकों की वीरता की कहानी नहीं था

कारगिल: वीरता जहाँ लहू बनकर बही, जयघोष बनकर गूंजी

तू क्या देगा भारत को? – कारगिल की गूंजता प्रश्न

कारगिल: जहाँ साँस लेना भी युद्ध था, फिर भी तिरंगा फहराया

जब भारत की मिट्टी शहीदों के लहू से रंग जाती है, तो वह न केवल इतिहास रचती है, बल्कि अमरता का वह गीत गाती है जो हर भारतीय के रग-रग में देशभक्ति की आग जला देता है। कारगिल की बर्फीली चोटियों पर बहा हर खून का कतरा आज भी पुकारता है – “मैंने अपने प्राण मातृभूमि को सौंप दिए, अब तू क्या देगा भारत को?” 26 जुलाई कोई साधारण दिन नहीं, यह भारत के शौर्य का वह स्वर्णिम पन्ना है जो हर हृदय में गर्व की लौ जलाता है। यह वह दिन है जब भारत ने दुनिया को बता दिया कि उसकी सीमाओं की ओर आँख उठाने वालों का दुस्साहस कुचल दिया जाता है, और मातृभूमि की रक्षा के लिए उसके वीर सपूत मौत को भी गले लगाने से नहीं डरते। कारगिल विजय दिवस केवल एक सैन्य जीत की गाथा नहीं, बल्कि यह उस अटूट संकल्प की कहानी है, जिसने भारत को अभेद्य बनाया।

मई 1999 में शुरू हुआ कारगिल युद्ध (KARGIL YUDH)भारतीय सेना के लिए एक ऐसी अग्निपरीक्षा था, जहाँ दुश्मन की गोलियाँ ही नहीं, बल्कि प्रकृति की क्रूरता भी हर कदम पर चुनौती दे रही थी। पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा का उल्लंघन कर कारगिल, द्रास और बटालिक की चोटियों पर गुप्त रूप से कब्जा कर लिया था। 16,000 से 18,000 फीट की ऊँचाई पर, जहाँ साँस लेना भी एक युद्ध था, दुश्मन ने अपनी स्थिति मज़बूत कर ली थी। हाड़ जमा देने वाली ठंड, खतरनाक भूभाग और छिपे हुए दुश्मन – यह सब मिलकर मौत का नंगा नाच रच रहे थे। लेकिन भारतीय सेना ने इस चुनौती को न केवल स्वीकारा, बल्कि अपने अदम्य साहस से उसे परास्त कर दिखाया। “ऑपरेशन विजय” की शुरुआत हुई, जो केवल एक सैन्य अभियान नहीं, बल्कि भारत के स्वाभिमान का प्रतीक बन गया।

इस युद्ध में भारतीय सैनिकों ने असंभव को संभव कर दिखाया। टाइगर हिल, तोलोलिंग और पॉइंट 5140 जैसी चोटियाँ, जिन्हें दुश्मन ने अभेद्य किला समझा था, भारतीय जवानों की वीरता के सामने धूल में मिल गईं। इस युद्ध में 527 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए, और लगभग 1,363 घायल हुए। फिर भी, कोई पीछे नहीं हटा। उनकी बंदूकें केवल बारूद नहीं, बल्कि देशभक्ति का जज़्बा उगल रही थीं। हर तिरंगा जो इन चोटियों पर लहराया, वह केवल कपड़ा नहीं, बल्कि हर शहीद की अंतिम साँस और भारत के गौरव का प्रतीक था। इन चोटियों पर लहराता तिरंगा उस माँ की मुस्कान था, जिसने अपने बेटे को देश के लिए खोया, और उस पिता का गर्व था, जिसने अपने लाल की शहादत को सलाम किया।(India Pakistan Kargil War)

कैप्टन विक्रम बत्रा, जिन्हें ‘शेरशाह’ का खिताब मिला, ने पॉइंट 5140 पर विजय पाकर “ये दिल मांगे मोर” का नारा बुलंद किया। यह नारा केवल एक उद्घोष नहीं था, बल्कि हर भारतीय के सीने में धड़कते जज़्बे की गूंज था। लेफ्टिनेंट मनोज पांडे, जिन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, ने अपनी वीरता से दुश्मन को घुटनों पर ला दिया। राइफलमैन संजय कुमार, ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव और कैप्टन अनुज नैय्यर जैसे वीरों ने अपनी जान की परवाह किए बिना देश की आन-बान-शान की रक्षा की। इनमें से कई सैनिकों की उम्र 20-25 वर्ष थी, फिर भी उनकी वीरता ने पीढ़ियों के लिए एक मिसाल कायम की। परमवीर चक्र, महावीर चक्र और वीर चक्र से सम्मानित ये वीर केवल नाम नहीं, बल्कि देशभक्ति की वह ज्योति हैं जो कभी बुझने वाली नहीं।

कारगिल युद्ध केवल सैनिकों की वीरता की कहानी नहीं था, बल्कि यह पूरे भारत की एकजुटता का जीवंत प्रमाण था। देश के कोने-कोने से लोग अपने जवानों के लिए प्रार्थनाएँ, पत्र और स्नेह भेज रहे थे। स्कूलों में बच्चे मोमबत्तियाँ जलाकर शहीदों को श्रद्धांजलि दे रहे थे, महिलाएँ अपने आँचल में दुआएँ बाँध रही थीं, और बुजुर्ग अपने आश्रय छोड़कर सैनिकों के समर्थन में सामने आए। मीडिया ने 24x7 कवरेज के साथ इस युद्ध को हर भारतीय के घर तक पहुँचाया, और पहली बार देश ने एकजुट होकर युद्ध को अपने दिल से महसूस किया। यह वह समय था जब हर भारतीय ने खुद को इस युद्ध का हिस्सा समझा, और यह संगठित देशप्रेम एक ऐसी मिसाल बना जो आज भी हमें प्रेरित करता है।

इस युद्ध ने भारत को कई सबक सिखाए। कारगिल के बाद भारत ने अपनी रक्षा नीति, सैन्य तैयारियों और खुफिया तंत्र को और मज़बूत किया। रक्षा मंत्रालय ने निगरानी तंत्र को उन्नत किया, और सशस्त्र बलों ने अपनी रणनीतियों में सुधार किया। यह युद्ध एक चेतावनी था कि देश की सुरक्षा केवल सीमाओं पर ही नहीं, बल्कि विचारों, नीतियों और एकता में भी सुनिश्चित करनी होगी। कारगिल ने हमें सिखाया कि शांति की चाहत हमें कमजोर नहीं बना सकती; हमें हमेशा सजग और तैयार रहना होगा।

हर साल 26 जुलाई को हम कारगिल विजय दिवस मनाते हैं, लेकिन यह दिन केवल औपचारिकता का नहीं है। यह वह दिन है जब हमें खुद से पूछना चाहिए – क्या हम उस भारत के योग्य हैं, जिसके लिए किसी माँ ने अपने बेटे को खोया? यह दिन हमें याद दिलाता है कि शहीदों का बलिदान केवल स्मृतियों में नहीं रहना चाहिए; उसे हमारे कर्मों, संकल्पों और राष्ट्रनिर्माण में उतारना होगा। कारगिल के शहीदों ने हमें एक ऐसा भारत सौंपा, जिसके लिए उन्होंने अपनी जान दी। अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम उस भारत को और मज़बूत, समृद्ध और एकजुट बनाएँ।

कारगिल विजय दिवस हमें यह भी सिखाता है कि सीमाएँ केवल नक्शों में नहीं होतीं, बल्कि हर दिल में भी एक सीमा होती है – सत्य और असत्य के बीच, देशप्रेम और स्वार्थ के बीच। जो इस सीमा की रक्षा करता है, वही सच्चा देशभक्त है। आज जब हम आजादी के अमृत काल की ओर बढ़ रहे हैं, कारगिल के शहीदों की वह पुकार हमें याद रखनी होगी – “देश सोता नहीं, देश सजग होता है।” यह पुकार हमें प्रेरित करती है कि हम अपने जीवन को केवल अपने लिए न जिएं, बल्कि उस मिट्टी के लिए जिएं, जिसे हमारे वीरों ने अपने लहू से सींचा है।

कारगिल की चोटियों पर गूंजे जयकारों ने हमें जो आत्मबल दिया, उसे केवल स्मृति बनाकर नहीं रखना है। उसे कर्म में, संकल्प में, और राष्ट्रनिर्माण की नींव में बदलना है। यह वही भारत है, जिसके लिए शहीदों ने अपने प्राणों की आहुति दी। उनका लहू इस मिट्टी में घुल गया है, और अब हमें उसे अपने जीवन की दिशा बनानी है। जब तिरंगा गर्व से लहराता है, तो उसमें कारगिल की ठंडी हवाओं की साँसें भी समाई हैं, जो हर शहीद की अंतिम साँस की साक्षी हैं। इस कारगिल विजय दिवस पर उन वीरों को नमन करें, और यह संकल्प लें कि जब देश पुकारे, तो हमारा उत्तर होगा – मैं हूँ तैयार! कारगिल की यह गाथा हमें सिखाती है कि भारत केवल एक देश नहीं, बल्कि एक भावना है, एक संकल्प है, और एक ऐसा गीत है जो हर भारतीय के दिल में गूंजता है। कारगिल विजय दिवस हमें याद दिलाता है कि हमारा देश तभी अजेय रहेगा, जब हम एकजुट रहेंगे, सजग रहेंगे, और अपने शहीदों के सपनों को साकार करने के लिए समर्पित रहेंगे। यह वह दिन है जब हमें अपने वीरों के बलिदान को न केवल याद करना है, बल्कि उसे अपने जीवन का मंत्र बनाना है।

प्रो. आरके जैन “अरिजीत

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