अमानवीय : मौत का तांडव बनाम जीत का जश्न

(डॉ. सुधाकर आशावादी )
किसी भी जश्न में यदि मौत का तांडव होने लगे तथा लोग भीड़ में कुचलकर अपनी जान गंवाने लगें, तब भी क्या जश्न मनाए जाने का कोई औचित्य बनता है। यह प्रश्न रॉयल चैलेंजर्स बंगलौर के आई.पी. एल. में जीत के जश्न के दौरान भगदड़ से हुई मौतों के कारण उपजा है। विडंबना यह भी है कि भारतीय राजनीति में जनमानस की सुरक्षा में चूक या लापरवाही से घटित दुर्घटनाएं भी सियासत से बच नहीं पाती। यदि ऐसा न होता तो देश के सत्ताधारी दल की कमियां खोजने वाले लोग अपने राज्यों में होने वाली दुर्घटनाओं पर अपने सुर न बदलते।
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान मची भगदड़ में जिस विपक्ष ने प्रबंधन में विफलता का ठीकरा फोड़कर मुख्यमंत्री के त्यागपत्र की मांग की थी, वही विपक्ष बेंगलुरु में क्रिकेट प्रेमियों के एक आयोजन में मची भगदड़ में ग्यारह लोगों की मौत पर चुप्पी साधे हुए है तथा इसमें सरकार की विफलता पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री से त्यागपत्र की मांग नहीं कर रहा है। समझ नहीं आता कि राजनीतिक तत्व इतनी अधिक बेशर्मी कहाँ से ओढ़ते हैं, उनकी आँखों पर भगदड़ की घटनाओं को देखते हुए दोहरा चश्मा कैसे लग जाता है ? कहीं ऐसा तो नहीं कि राजनीति में जो शख्स जैसा देखना चाहता हो, वैसा ही देखता हो या कभी उसकी आँखों में मोतियाबिंद उतर आता हो और कभी स्वतः ही ठीक हो जाता हो।
बहरहाल रॉयल चैलेंजर्स बंगलौर ने आई पी एल का अनूठा खिताब जीतकर जश्न मनाने के लिए प्रशंसकों को घर घर जाकर बुलाया तो नहीं होगा। प्रशंसक कमाई के इस गोरखधंधे में रॉयल चैलेंजर्स के साथ हाथ मिलाने की ख्वाहिश लेकर तो नहीं आए होंगे। केवल अपने पसंदीदा खिलाडियों की झलक प्रत्यक्ष रूप से देखने आए होंगे। यदि वे भगदड़ के शिकार हुए तो यह मानवीय दुर्घटना हो सकती है। भीड़ बढ़ती है, तो भगदड़ भी मचती है। भगदड़ में मौतें भी होती हैं। माननीय न्यायालय कभी कभी लापरवाही पूर्ण घटनाओं को स्वतः संज्ञान में ले लेता है। कभी कभी नहीं भी लेता। हर कोई जानता है कि बड़े आयोजनों में बहुधा भीड़ में जुटे लोगों की संख्या को लेकर लगाए गए अनुमान गलत सिद्ध होते हैं। उत्तर प्रदेश के हाथरस में भी ऐसा हुआ।
किसी फिल्म के प्रीमियर पर भी ऐसा हुआ, जब भगदड़ में किसी दर्शक की मौत पर उस अभिनेता को ही दोषी ठहरा दिया गया, जिसके दर्शन के लिए भीड़ आई थी। यदि ऐसा है तो अप्रिय दुर्घटना के लिए जश्न मनाने वाले खिलाडियों को भी दोषी ठहराया जा सकता था, किन्तु ऐसा नहीं हुआ। बाहर भीड़ में चीख पुकार मचती रही और स्टेडियम में जीत का जश्न मनता रहा। अपने चहेते खिलाडियों और नेताओं के साथ फोटो सेशन चलते रहे। यह अमानवीय व निंदनीय कृत्य ही कहा जाएगा। मेरा मत है, कि भीड़ को नियंत्रित करना सरल नहीं होता, क्योंकि भीड़ की कोई दिशा नहीं होती। ऐसे में प्रत्येक दुर्घटना को मानवीय दृष्टि से देखा व समझा जाना अनिवार्य है। ऐसी दुर्घटनाओं पर किसी भी प्रकार की राजनीति किया जाना किसी भी स्थिति में उचित नहीं है। *(विनायक फीचर्स)*