अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात

अलास्का से उठा सवाल: क्या भारत बनेगा शांति का सेतु?
शांति की पुकार: असफल वार्ता के बाद भारत का बढ़ता महत्व
जब विश्व की निगाहें अलास्का के एंकोरेज पर टिकी थीं, जहां अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप(US President Donald Trump) और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Russian President Vladimir Putin)की मुलाकात रूस-यूक्रेन युद्ध की आग को शांत करने की उम्मीद जगा रही थी, तब भारत सहित पूरी दुनिया सांस थामे इस ऐतिहासिक क्षण की प्रतीक्षा में थी। यह मुलाकात, जो वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव मानी जा रही थी, तीन घंटे की गहन चर्चा के बाद बेनतीजा रही। ट्रंप का दृढ़ कथन, “समझौता तभी, जब वास्तव में समझौता हो,” और पुतिन का युद्ध के “मूल कारणों” को समाप्त करने पर जोर, वैश्विक कूटनीति की जटिलता को उजागर करता है। भारत, जो शांति का सिपाही और रणनीतिक संतुलन का प्रतीक रहा है, इस विफलता को एक चुनौती के साथ-साथ अवसर के रूप में देखता है।
रूस-यूक्रेन युद्ध, जो फरवरी 2022 से शुरू होकर वैश्विक अर्थव्यवस्था, ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा को हिलाकर रख चुका है, भारत के लिए विशेष महत्व रखता है। इस युद्ध ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित किया, तेल और गैस की कीमतों में उछाल लाया और खाद्य वस्तुओं की उपलब्धता पर गहरा प्रभाव डाला। भारत, जो अपनी ऊर्जा जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा आयात पर निर्भर करता है, ने इस संकट का सामना करने के लिए रूस से रियायती तेल आयात को बढ़ाया। यह कदम भारत की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण रहा, लेकिन वैश्विक बाजारों की अस्थिरता ने नई चुनौतियां खड़ी कीं। इसके साथ ही, भारत ने क्वाड और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में पश्चिमी देशों के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को गहरा किया है, जिसने उसे एक नाजुक संतुलन की राह पर ला खड़ा किया है।
इस संदर्भ में, अलास्का की असफल वार्ता भारत के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश देती है। यह विफलता भारत को अपनी कूटनीति को और तीक्ष्ण करने और वैश्विक मंच पर अपनी तटस्थता को और मजबूत करने का अवसर प्रदान करती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कथन, “यह युद्ध का युग नहीं है,” भारत की शांति-समर्थक नीति को रेखांकित करता है। यह नीति भारत को रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने का अवसर देती है, जिससे वह वैश्विक शांति और स्थिरता में योगदान दे सकता है।
यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की की इस वार्ता में अनुपस्थिति ने यूरोप में चिंताओं को बढ़ा दिया। जेलेंस्की ने रूसी हमलों की निरंतरता पर अपनी नाराजगी व्यक्त की, जो मॉस्को की युद्ध समाप्त करने की अनिच्छा को दर्शाता है। दूसरी ओर, पुतिन ने युद्ध के “मूल कारणों” पर जोर दिया, जो नाटो के विस्तार और रूस की सुरक्षा चिंताओं से जुड़े हैं। यह रूस की अडिग स्थिति को दर्शाता है। वहीं, ट्रंप की सख्त शर्तें, जो युद्ध के त्वरित अंत की संभावनाओं को धूमिल करती हैं, वैश्विक कूटनीति की जटिलता को और स्पष्ट करती हैं।
इस स्थिति में भारत की तटस्थता एक महत्वपूर्ण संपत्ति है। भारत ने रूस के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को बनाए रखा है, जबकि यूक्रेन को मानवीय सहायता प्रदान करके अपनी शांति-समर्थक छवि को मजबूत किया है। 2022 से, भारत ने यूक्रेन को दवाइयां, चिकित्सा उपकरण और अन्य आवश्यक सहायता प्रदान की है, जो उसकी मानवीय नीति का प्रमाण है। यह तटस्थता भारत को एक ऐसे मध्यस्थ के रूप में स्थापित करती है, जो न केवल अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सकता है, बल्कि वैश्विक शांति के लिए एक सेतु का निर्माण भी कर सकता है।
अलास्का की यह असफल वार्ता भारत के लिए अपनी कूटनीतिक भूमिका को और सक्रिय करने का एक सुनहरा अवसर है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर शांति प्रस्तावों का समर्थन किया है और रूस-यूक्रेन के बीच संवाद को प्रोत्साहित किया है। भारत की अद्वितीय स्थिति न तो पूरी तरह पश्चिमी ब्लॉक का हिस्सा, न ही रूस-चीन गठजोड़ का, उसे वैश्विक मंच पर एक विश्वसनीय मध्यस्थ बनने का अवसर देती है। यह स्थिति भारत को वैश्विक शांति प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करती है।
इसके साथ ही, युद्ध के लंबा खिंचने की संभावना भारत को अपनी ऊर्जा और रक्षा नीतियों में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। भारत ने हाल के वर्षों में स्वदेशी रक्षा उत्पादन और ऊर्जा स्रोतों के विविधीकरण पर विशेष ध्यान दिया है। उदाहरण के लिए, ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के तहत भारत ने रक्षा क्षेत्र में स्वदेशी हथियारों और तकनीकों का विकास तेज किया है। साथ ही, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर और पवन ऊर्जा में निवेश बढ़ाकर भारत ने अपनी ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में कदम उठाए हैं। यह अनिश्चितता का दौर भारत के लिए अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को और सशक्त करने का अवसर है।
अलास्का की यह नाकाम वार्ता वैश्विक कूटनीति की नाजुकता को उजागर करती है। यह दिखाती है कि वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए केवल बड़े नेताओं की मुलाकातें पर्याप्त नहीं हैं; इसके लिए गहन संवाद, आपसी विश्वास और रचनात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। भारत, जो अपनी कूटनीतिक चतुराई और तटस्थता के लिए जाना जाता है, इस स्थिति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। भारत की संवाद और सहयोग की नीति उसकी वैश्विक साख को मजबूत करती है। संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर भारत को शांति प्रस्तावों को और जोरदार तरीके से उठाना होगा। साथ ही, भारत को अपने आर्थिक और रक्षा हितों की रक्षा के लिए रणनीतिक स्वायत्तता को और सशक्त करना होगा।
भारत की यह तटस्थता और कूटनीतिक चतुराई उसे वैश्विक शांति में योगदान देने का अवसर देती है। भारत ने पहले भी कई मौकों पर वैश्विक संकटों में मध्यस्थ की भूमिका निभाई है, और यह स्थिति भी उसकी कूटनीतिक क्षमता को परखने का अवसर है। भारत को चाहिए कि वह न केवल अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करे, बल्कि वैश्विक मंच पर एक ऐसी शक्ति के रूप में उभरे, जो स्थिरता और शांति की नई राह बनाए।
अलास्का की असफल वार्ता ने वैश्विक कूटनीति की जटिलताओं को उजागर किया है, लेकिन भारत के लिए यह एक अवसर है। अपनी तटस्थता, कूटनीतिक चतुराई और रणनीतिक स्वायत्तता के बल पर भारत न केवल अपने हितों की रक्षा कर सकता है, बल्कि वैश्विक शांति और स्थिरता में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। यह समय भारत के लिए अपनी वैश्विक भूमिका को और मजबूत करने का है। रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे संकटों के बीच भारत की नीति—संवाद, सहयोग और आत्मनिर्भरता—उसे एक ऐसी शक्ति के रूप में स्थापित करती है, जो न केवल अपने भविष्य को सुरक्षित करे, बल्कि विश्व को शांति और समृद्धि की ओर ले जाए।
प्रो. आरके जैन “अरिजीत