बीजेपी और RSS का अब अगला निशाना कौन?


आरएसएस के मुखपत्र 'ऑर्गनाइजर' ने कैथोलिक चर्च की संपत्ति को लेकर एक लेख प्रकाशित किया। हालांकि, बाद में वह लेख हटा लिया गया, लेकिन संदेश साफ था—अब अगला निशाना कौन?

(लेखक/राम पुनियानी/अटल हिन्द)

लेखक/राम पुनियानी/अटल हिन्द

हाल ही में संसद ने वक्फ संशोधन विधेयक पारित किया, जिसे अब ‘एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995’ यानी संक्षेप में ‘उम्मीद (UMMID)’ कहा जा रहा है। इस विधेयक के पारित होने के बाद, विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने चेताया कि अब अन्य धार्मिक समुदायों की संपत्तियां भी निशाने पर आएंगी। उनका यह अंदेशा तुरंत सच साबित हुआ जब आरएसएस के मुखपत्र 'ऑर्गनाइजर' ने कैथोलिक चर्च(Catholic Church) की संपत्ति को लेकर एक लेख प्रकाशित किया। हालांकि, बाद में वह लेख हटा लिया गया, लेकिन संदेश साफ था—अब अगला निशाना कौन?

झारखंड की एक मंत्री ने आशंका जताई कि आदिवासी संपत्तियां भी इसी तरह निशाने पर आ सकती हैं। संसद में इस विधेयक पर चर्चा के दौरान नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू, चिराग पासवान और जयंत चौधरी जैसे एनडीए सहयोगी भी बीजेपी के साथ खड़े हो गए और मुस्लिम समुदाय के साथ घोर विश्वासघात किया। यदि इन दलों में वास्तव में बहुलतावादी मूल्यों की समझ और प्रतिबद्धता होती, तो वे इस विधेयक को पारित होने से रोक सकते थे।

जैसा कि पादरी मार्टिन नीमोलर की प्रसिद्ध उक्ति हमें सिखाती है—फ़ासीवाद एक समूह को निशाना बनाकर शुरू होता है, और धीरे-धीरे दूसरों को भी कुचलता है। कैथोलिक बिशपों का इस विधेयक के प्रति समर्थन उसी सोच का हिस्सा है। दुर्भाग्य से, वे भी अगला निशाना बन सकते हैं। विडंबना यह है कि इस्लामोफोबिया से ग्रस्त होकर वे इस साम्प्रदायिक रणनीति के समर्थक बन बैठे हैं, बिना यह समझे कि इस आग में वे खुद भी झुलस सकते हैं।

वक्फ वह संपत्ति होती है जो मुसलमान (या अन्य लोग भी) धार्मिक और सामाजिक कार्यों के लिए दान करते हैं। भारत में वक्फ संपत्ति की मात्रा बहुत अधिक है। हालांकि कहा जाता है कि वक्फ देश का तीसरा सबसे बड़ा जमींदार है, लेकिन हिंदू ट्रस्टों और मंदिरों (Hindu trusts and temples)के पास इससे कहीं अधिक संपत्ति है।

संशोधन का उद्देश्य स्पष्ट है—मुस्लिम समुदाय (Muslim community)का वक्फ बोर्ड(Waqf Board) पर नियंत्रण कम करना। जहां हिंदू ट्रस्टों का नियंत्रण पूरी तरह हिंदुओं के हाथ में है, वहीं वक्फ बोर्ड में अब गैर-मुसलमानों को भी शामिल किया जाएगा, और संपत्ति विवादों में जिलाधिकारी को प्रमुख अधिकार प्राप्त होंगे। यह साफ़-साफ़ भेदभावपूर्ण रवैया है।

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि इस विधेयक का उद्देश्य गरीब मुसलमानों की हालत सुधारना है। लेकिन गरीबी हटाना सरकार की ज़िम्मेदारी है, न कि धार्मिक संपत्तियों को नियंत्रित करके किया जाने वाला कोई उपाय। यदि वाकई उद्देश्य जनकल्याण है तो हिंदू मंदिरों और ट्रस्टों की अपार संपत्ति का उपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए क्यों नहीं किया जा रहा?

रिजिजू का यह दावा कि कई मुसलमानों ने उनका धन्यवाद किया है, एक हास्यास्पद बयान है। देश की हज़ारों मुस्लिम संस्थाओं ने इस संशोधन के विरुद्ध अपना विरोध दर्ज कराया है। यह क़ानून मुस्लिम समुदाय को कमजोर और हाशिए पर धकेलने की साजिश है।

बीजेपी के लिए लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता सिर्फ दिखावे की बातें हैं। मुसलमानों को नमाज़ पढ़ने, बीफ खाने, त्योहारों में शामिल होने या यहाँ तक कि कोरोना जिहाद, थूक जिहाद जैसे आरोपों के नाम पर लगातार निशाना बनाया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद कई राज्य सरकारें बुलडोजर नीति के तहत मुस्लिम संपत्तियों को तबाह कर रही हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में चुनाव प्रचार के दौरान संविधान को अपने माथे से लगाया, जबकि सच्चाई यह है कि उनके नेतृत्व में संविधान को सिर्फ एक दिखावा बना दिया गया है। उत्तर प्रदेश में तो अगर कोई वक्फ विधेयक का विरोध करता है, तो दो लाख रुपए का बॉन्ड देना होगा। यह किस प्रकार की लोकतंत्र की रक्षा है?

वक्फ संशोधन कानून भारतीय संविधान के प्रावधानों और मूल भावना दोनों का उल्लंघन करता है। वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने इस बात को स्पष्ट किया है कि—

"न्यायालयों ने ऐसे वक़्फ़ को भी मान्यता दी है जो गैर-मुस्लिमों द्वारा बनाए गए हैं। अब तक वक्फ बोर्ड एक स्वायत्त निकाय था जिसमें सभी सदस्य मुसलमान होते थे और प्रमुख कार्यकारी अधिकारी भी मुसलमान होता था। उसका कार्य पूरी तरह वक्फ की नीयत, उद्देश्यों और परंपराओं के अनुरूप होता था। संपत्ति विवादों का निपटारा न्यायिक अधिकरण करता था जिसकी अध्यक्षता जिला जज करते थे।"

बीजेपी द्वारा लाया गया यह नया विधेयक इन सब पर पानी फेरता है और वक्फ की मूल भावना को ही कुचल देता है। यह एक और कदम है मुस्लिम समुदाय को डराने और हाशिए पर डालने की दिशा में।

जहाँ वक्फ में भ्रष्टाचार की शिकायतें एक गंभीर विषय हैं, वहीं इसे खत्म करने का रास्ता है—संस्थाओं में पारदर्शिता और लोकतंत्र को बढ़ाना, ना कि उन्हें कुचल देना। यह बात सिर्फ वक्फ ही नहीं, बल्कि सभी धार्मिक संस्थाओं पर लागू होती है।

‘ऑर्गनाइज़र’ का चर्च की संपत्ति पर लेख इस बात की चेतावनी है कि जो लोग मुस्लिम समुदाय पर हो रहे हमलों का समर्थन कर रहे हैं, वे यह भ्रम न पालें कि वे खुद बच जाएँगे।

आज जब मुस्लिम समुदाय इस विधेयक के विरुद्ध आवाज उठा रहा है, तो हर उस व्यक्ति और समुदाय को जो लोकतंत्र, समानता और बहुलवाद में विश्वास रखते हैं, इस विरोध के साथ खड़ा होना चाहिए। जो लोग सत्ता और स्वार्थ के लिए अपने मूल्यों से गद्दारी कर रहे हैं, वे इतिहास के कूड़ेदान में फेंके जाएँगे—यह जनता को तय करना है कि कब और कैसे।

(आईआईटी बॉम्बे में प्रोफेसर रहे लेखक एक प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं। व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।)

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