आधार कार्ड -भारत का बायोमेट्रिक आइडेंटिफिकेशन सिस्टम ‘एक असफल और खतरनाक मॉडल

नई दिल्ली(न्यूज हेंड)
मानवाधिकार दिवस(Human Rights Day) (10 दिसंबर) की पूर्व संध्या पर देश के 50 से अधिक संगठनों और लगभग 200 प्रमुख पत्रकारों, वकीलों, अर्थशास्त्रियों, अकादमिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एक संयुक्त बयान जारी कर दुनिया को ‘आधार’ (Aadhaar card)मॉडल से सावधान रहने की अपील की है.
अपील में कहा गया है कि भारत का बायोमेट्रिक आइडेंटिफिकेशन सिस्टम(Biometric Identification System) ‘एक असफल और खतरनाक मॉडल’ है जिसे अन्य देशों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए.
यह बयान ऐसे समय सामने आया है जब विश्व बैंक का ID4D कार्यक्रम, और अंतरराष्ट्रीय संस्थान भारत के आधार सिस्टम को वैश्विक पहचान मॉडल के रूप में प्रचारित कर रहे हैं- खासकर केन्या, नाइजीरिया, युगांडा जैसे देशों में.
हाल ही में यूनाइटेड किंगडम में भी नेशनल आईडी कार्ड को लेकर बहस शुरू हुई है, और ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीएर स्टार्मर की भारत यात्रा के दौरान नंदन नीलेकणि से मुलाकात को इसी संदर्भ में देखा जा रहा है.
संगठनों ने इसी माहौल को देखते हुए अपील जारी की है, जिसके बारे में उनका कहना है कि ‘ज़मीन की वास्तविकताओं को सामने रखना बेहद ज़रूरी है, ताकि दुनिया प्रचार के जाल में न फंसे.’
अपील में आधार से संबंधित मुख्य चिंताएं इस प्रकार हैं:
1. आधार के लिए एक केंद्रीकृत डेटाबेस बनता है जिसमें बायोमेट्रिक्स और डेमोग्राफिक जानकारी (जैसे कि नाम, लिंग, जन्मतिथि और पता) दर्ज होती है. इस तरह का केंद्रीकृत डेटाबेस सामाजिक नियंत्रण का औजार बन सकता है, खासकर तानाशाह सरकार(dictatorial government) के हाथों में.
2. आधार के साथ अनगिनत अन्य डेटाबेस को जोड़ने से इस बात का खतरा और बढ़ जाता है कि आधार को लोगों को प्रोफाइल करने, उन पर निगरानी रखने, उन्हें बाहर करने और न जाने किस-किस के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. डेटा सुरक्षा के नजरिए से केंद्रीकृत डेटाबेस कम सुरक्षित हैं, क्योंकि वह एक ही पॉइंट ऑफ फेलियर बन जाते हैं.
3. हालांकि आधार डेटाबेस में ‘कोर बायोमेट्रिक्स’ (फोटो को छोड़कर अन्य बायोमेट्रिक्स) तथाकथित रूप से सुरक्षित हैं लेकिन बाकी जानकारी सत्यापन के लिए अधिकृत यूजर के साथ, न्यूनतम सुरक्षा उपायों के साथ, खुलेआम साझा की जाती है. यह निजता का गंभीर उल्लंघन है.
4. आधार डेटाबेस में लोगों की डेमोग्राफिक जानकारी में ढेर सारी त्रुटियां हैं. यह काफी हद तक आधार नामांकन को जल्दबाजी में करने की वजह से हुआ. इसके बावजूद, गलतियों सुधारने पर कई पाबंदियां हैं और लोगों से यह अपेक्षा है कि वे अपने अन्य दस्तावेजों में दर्ज जानकारी का, आधार डेटाबेस में दर्ज त्रुटिपूर्ण डिटेल्स से मिलान करेंगे. इससे गरीब लोगों को अनगिनत दिक्कतें हो रही हैं और उनमें से बहुत अपने सामाजिक लाभों से वंचित हुए हैं.
5. वृद्ध लोगों में बायोमेट्रिक फेलियर, उन्हें सामाजिक लाभों से वंचित कर रहा है. बायोमेट्रिक प्रणाली की निर्भरता के बारे में जाने बिना आधार को शुरू कर दिया गया था.
6. वंचित समाज (खासकर किसी शारीरिक अक्षमता से जूझ रहे लोग) का एक अहम हिस्सा है जिनके पास, विभिन्न कारणों से, खुद की गलती न होने पर भी, आधार है ही नहीं. वे सामाजिक लाभों से वंचित हैं.
7. यदि आधार नंबर खो जाए, तो उसे वापस पाना बहुत मुश्किल हो सकता है. गरीब लोगों को, क्षेत्रीय सहायता केंद्रों के कई चक्कर काटने पड़े हैं. इसके बावजूद, कई असफल रहे हैं और अब सामाजिक लाभों से वंचित हैं.
8. आधार नंबर को, अन्य डेटाबेस (राशन कार्ड, जॉब कार्ड, पेंशन सूची, बैंक अकाउंट, वोटर लिस्ट, इत्यादि) के साथ जबरन जोड़ने की प्रक्रिया ‘फंक्शन क्रीप’ दर्शाती है. (फंक्शन क्रीप यानी जिस उद्देश्य से जारी हुआ, उससे कई गुणा ज़्यादा दायरों में इस्तेमाल में लाना.) यह नागरिकों और कर्मचारियों के समय की बर्बादी है. कहने के लिए आधार को अन्य डेटाबेस से जोड़ना आसान लगता हैं, लेकिन इसके लिए बायोमेट्रिक या डेमोग्राफिक सत्यापन की जरूरत पड़ती है. दोनों ही कठिन हो सकते हैं.
9. आधार में दर्ज जानकारी को सुधारने के लिए, आधार सहायता केंद्रों में भीड़ और लंबी कतारें आम बात है. लोगों को घंटों तक राह देखनी पड़ती है बिना इस गारंटी के कि उनका काम होगा कि नहीं. शिकायत को ट्रैक करने का, लगातार सहायता की, या अन्य राहत की कोई सुविधा नहीं है. लोगों का समय और पैसा लुट रहा है.
10. सामाजिक योजनाओं में भ्रष्टाचार कम करने के बजाय, आधार के केंद्रीकृत डेटाबेस से पारदर्शिता घटी है एवं लोगों और सरकार के बीच जानकारी के संतुलन को खराब किया है. आधार को बैंकिंग से जोड़ने से नई कमजोरियों (जैसे कि ‘आइडेंटिटी फ्रॉड’) की चपेट में आना बढ़ा है.
11. हर कदम पर, आधार व्यवस्था कानून के दायरे के बाहर चली है. इसकी शुरुआत बिना किसी कानूनी समर्थन के हुई. फिर, राज्यसभा को ठेंगा दिखाते हुए आधार कानून पारित हुआ. भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) कई बार सर्वोच्चतम न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन करता है (जैसे कि बच्चों और निजी कंपनियां द्वारा उपयोग पर पाबंदियों को दरकिनार करना). यूआईडीएआई बहुत शक्तिशाली है और समय-समय पर ऐसे नियम जारी करता है जिससे लाखों लोगों की ज़िंदगी की कठिनाइयों और बढ़ जाती है. जिन लोगों के लिए नियम जारी होते हैं उनसे कभी भी सलाह नहीं ली जाती. आधार विधेयक के मसौदे में संसदीय निगरानी के प्रावधान को पारित कानून से हटा दिया गया.
अपील पर साइन करने वालों में कौन-कौन शामिल?
साइन करने वालों की सूची बेहद लंबी है- अरुंधति रॉय, अरुणा रॉय, पी. साईनाथ, नंदिनी सुंदर, बेज़वाड़ा विल्सन, कोलिन गोंसाल्वेस जैसे प्रमुख नामों के साथ पीयूसीएल, एमकेएसएस, नरेगा वॉच, इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन, राइट टू फूड कैंपेन और कई मजदूर व छात्र संगठनों ने इस बयान का समर्थन किया है. अपील के अनुसार ‘अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के आधार मॉडल की कहानी झूठी सफलता की कहानी के रूप में बेची जा रही है, जबकि ज़मीन पर यह लाखों लोगों के लिए एक संकट बन चुका है.’
अपील में यह भी कहा गया है कि दुनिया के कई देशों में ऐसी पहचान प्रणालियां मौजूद हैं जो आधार की तुलना में अधिक सुरक्षित, कम दमनकारी और कम त्रुटिपूर्ण हैं. इसलिए अन्य देशों को सलाह दी गई है कि वे भारत से प्रेरित होकर केंद्रीयकृत बायोमेट्रिक आईडी लागू न करें. जरूरत पड़ने पर यह समूह उन देशों को भारत में आधार से जुड़े वास्तविक अनुभवों और समस्याओं को समझाने में मदद करेगा.
मानवाधिकार दिवस के मौके पर जारी यह बयान न सिर्फ आधार की आलोचना है, बल्कि भारत की डिजिटल गवर्नेंस और नागरिक अधिकारों के भविष्य को लेकर उठता एक गंभीर सवाल भी है कि क्या तकनीक के नाम पर बने ऐसे ढांचे अंततः लोकतंत्र को ही कमजोर कर देंगे?
