दो चोरों में समझौता हुआ
अटल हिन्द /संजय पराते
मध्यप्रदेश में डबल इंजन की सरकार है, क्योंकि केंद्र का इंजन भी राज्य के इंजन से जुड़ जाता है। अधिकांश जिलों में ट्रिपल इंजन की सरकार है, क्योंकि ये दोनों इंजन जिलों में स्थानीय निकायों और ग्राम पंचायतों के भाजपाई इंजन से जुड़ जाते हैं। जिस रेल में तीन-तीन इंजन लगे हो, उसकी मजबूती और ताकत का अंदाजा कोई भी सहज लगा सकता है। लेकिन यह भी सच है कि यदि पटरियां ही सड़ी-गली हो, तो ये इंजन भी काम नहीं आते।
मध्यप्रदेश में ऐसा ही हो रहा है। पूरे राज्य के कलेक्टर और अधिकारी भाजपाई नेताओं से परेशान हैं। परेशानी की असली वजह यही है कि आम जनता ने जिन लोगों को विधायिका का काम सौंपा है, उसे करने के बजाए वे कार्यपालिका के काम में दिलचस्पी लेने लगे हैं। भाजपा के विधायकों और सांसदों की विधायिका में कोई दिलचस्पी नहीं है। होती, तो संसद और विधानसभा में उनकी उपस्थिति का अहसास आम जनता को होता। विधायिका में उनकी दिलचस्पी होती, तो आम जनता के मुद्दों और उनकी समस्याओं पर संसद और विधानसभा में घमासान होता। दिलचस्पी होती, तो भ्रष्ट अफसर नपते नजर आते। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है। पुल टूट रहे हैं, सड़कें बह रही हैं, न खाने योग्य मध्यान्ह भोजन बच्चों को परोसा जा रहा है, शराब के नशे में ही शिक्षक स्कूल में झूम रहे हैं, आंगनबाड़ी भवन ढह रहे हैं, दलित-आदिवासियों पर मुता जा रहा है, जिंदो को कागजों में दफनाकर जमीन हड़पी जा रही है, मृत कर्मचारियों की भी पेंशन बनाकर हड़पा जा रहा है, लेकिन किसी भी मामले में किसी पर भी कोई कार्यवाही नहीं। यह हाल शिवराज सिंह चौहान के जमाने में था, तो मोहन यादव के समय भी है। मुख्यमंत्री आते-जाते रहते हैं, समस्याएं वहीं की वहीं रह जाती है, बल्कि और ज्यादा गंभीर हो जाती है।
हाल ही में भिंड के कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव को भाजपा विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाहा ने पीट दिया। ये तो सुरक्षा बल के जवान थे, जिन्होंने कलेक्टर को बचा लिया। ये सुरक्षा बल आम जनता को भले ही सुरक्षा न दे पाए, अपने हुक्मरान की सुरक्षा में जरूर मुस्तैद रहते है। कहते है कि कलेक्टर और विधायक दोनों ने एक दूसरे को "चोर" कहा, और ऊपर के किसी बड़े चोर, जो इस जिले के प्रभारी मंत्री बताए जाते हैं, के हस्तक्षेप के बाद नीचे के दोनों चोरों में समझौता हुआ। अभी तक संविधान के अनुसार, मुख्यमंत्री और उसके मंत्रिमंडल सदस्य ही शासन के कर्ता-धर्ता माने जाते हैं, फिर जिलों में प्रभारी मंत्री कहां से पैदा हुआ और उसका अधिकार क्षेत्र क्या है, यह तो सत्ताधारी भाजपा ही बता सकती है। लेकिन तय मानिए कि शासन और प्रशासन नाम की किसी चिड़िया के ऊपर कोई और बैठा है, जिसकी इतनी औकात है कि विधायिका और कार्यपालिका के दो चोरों का मेलमिलाप करा सकें।
लेकिन विधायिका के हाथों कार्यपालिका के पिटने की यह कोई पहली घटना नहीं है और न आखिरी होगी। इससे पहले ग्वालियर में आईएएस निगमायुक्त भी सत्तारूढ़ भाजपा के छुटभैये नेताओं के हाथों पिट चुके हैं। इससे पहले शिवपुरी जिले के एसपी का भी यही हाल हुआ, लेकिन यहां पराक्रम भाजपा विधायक प्रीतम लोधी ने दिखाया था। देवास में भाजपा विधायक के बेटे ने ही आधी रात को पुलिस के सामने एक मंदिर के दरवाजे खुलवा दिए थे। भगवान की नींद में खलल डलते देखकर भी पुलिस की नींद नहीं टूटी थी।
भाजपा राज के शासन की ये चंद बानगियां हैं। यदि नौकरशाही ही विधायिका और उसके गुर्गों से पीट रही है, तो आम जनता की रक्षा कौन करेगा? वैसे, भाजपा राज में अब आम जनता भी नागरिक ही कहां रही? चुनाव आयोग के जरिए आज भाजपा उस जनता से ही नागरिकता के प्रमाणपत्र मांग रही है, जिसने उसे चुना है। जिस जनता ने भाजपा को चुना है, उसके पास नागरिकता का कोई प्रमाणपत्र भी नहीं है, कागज का एक टुकड़ा भी नहीं, जिसे दिखाकर वह दावे से कह सके कि वह भारत का नागरिक है। जो भारत का नागरिक नहीं है, उसे भारत में रहने का अधिकार ही नहीं है। जिसे भारत में रहने का अधिकार ही नहीं है, वह निश्चित ही घुसपैठिया है। जो घुसपैठिया है, उसे तो भारत से बाहर करना ही होगा। भाजपा इन तमाम झंझटों और कानूनी पचड़ों से बचना चाहती है। वह नागरिकों को प्रजा बना देना चाहती है और खुद दयालु राजा बन जाना चाहती है। अब यह राजा की दया पर निर्भर है कि कौन-सी प्रजा उसके राज में रहे और किसे इस राज से बाहर करना है। इस मामले में वह कोई भेदभाव भी नहीं करना चाहती। उसका साफ सिद्धांत है : हिंदू हिंदू यहां रहे ; बाकी यहां से चले जाएं या फिर हिंदुओं के दास बन जाएं। बन गया संघ के सौंवे साल में उसके सपनों का 'हिंदू राष्ट्र!' इसके पहले प्रधानमंत्री ने लाल किले पर चढ़कर संघी गिरोह की गौरव गाथा से पूरी दुनिया को परिचित करा ही दिया है। है कोई माई का लाल, जो कहे कि उन्होंने झूठ बोला है! जिस सावरकर और गोडसे को महात्मा गांधी-नेहरू-आंबेडकर राज में कोई पूछता नहीं था, संघी गिरोह के हिंदू राष्ट्र में अब उनको पूजा जायेगा। जो इस पूजा में शामिल नहीं होंगे, उनको इस पवित्र भूमि में रहने का भी अधिकार नहीं होगा।
मध्यप्रदेश में भाजपा कई सालों से सत्ता में है, तो प्रशासन चलाने का अधिकार भी अब उसी को मिलना चाहिए। मोहन राज में अब मध्यप्रदेश में भाजपा ही प्रशासन है, तो जनता को भी भाजपाई होना पड़ेगा। न कांग्रेसी होंगे, न कम्युनिस्ट, न तिरंगा चलेगा, न लाल। चारों तरफ भगवा ही भगवा होगा, भाजपा ही भाजपा होगी। चहुँ दिशाओं में अंधभक्त फैले होंगे, जो हर क्षण, हर पल, रात-दिन, साल भर लोकतंत्र की मजबूती का गुणगान करेंगे। अधिकारी और प्रजा इन अंधभक्तों से जितना ज्यादा पिटेंगे, उनकी जितनी ज्यादा मॉब लिंचिंग होगी, लोकतंत्र उतना ही ज्यादा मजबूत होगा। जितनी जोर से, शोर से मोदी जी के जैकारे लगेंगे, लोकतंत्र उतना ही ज्यादा मजबूत होगा। नेहरू को भूलना और भागवत-मोदी को जपना लोकतंत्र की मजबूती की पहली
शर्त है।