जेएनयू में कथित हिन्दू संग़ठन आरएसएस/एबीवीपी की करारी हार
जेएनयू : छात्रों ने आरएसएस/एबीवीपी, प्रशासन और केंद्र सरकार की तिकड़ी को हराया
आलेख : अविजित घोष, पार्वती पी, अनुवाद : संजय पराते
देश भर में छात्र संघ चुनाव लगभग स्थगित कर दिए गए हैं। अधिकांश राज्यों में छात्र संघ चुनाव कई वर्षों से प्रतिबंधित हैं। कुछ केंद्रीय विश्वविद्यालयों में चुनाव होते हैं और उनमें से जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) महत्वपूर्ण है। जेएनयू में चुनाव वैचारिक आधार पर लड़े जाते हैं, जहां बाहुबल और धनबल से संचालित छात्र संगठनों, विशेष रूप से आरएसएस के नेतृत्व वाली अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) (Hindu organization RSS/ABVP)को छात्रों द्वारा खारिज कर दिया जाता है। विभिन्न केंद्रीय विश्वविद्यालयों और भाजपा शासित राज्यों में, वे छात्रों को संगठित होने से रोकने के लिए विभिन्न तरीके खोज रहे हैं। एबीवीपी दिल्ली विश्वविद्यालय को अपने हाथ में रखने में सफल रही और इस वर्ष उसने हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय और पंजाब विश्वविद्यालय (Central University of Hyderabad and Punjab University)में प्रमुख केंद्रीय पदों पर जीत हासिल की है। संघ परिवार ने इस बार जेएनयू पर कब्जा करने के लिए हर संभव प्रयास किया, जिसमें प्रशासन के माध्यम से केंद्र सरकार की मदद भी शामिल थी। इसी संदर्भ में जेएनयू के छात्रों ने एबीवीपी और संघ परिवार की विभाजनकारी और सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ स्पष्ट जनादेश दिया है।
जेएनयू छात्रसंघ 2025-26 में छात्रों ने स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई)(Students Federation of India (SFI)), ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) (All India Students Association (AISA))और डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन (डीएसएफ) से मिलकर बने “लेफ्ट यूनिटी” पैनल का भारी समर्थन किया। लेफ्ट यूनिटी (Left Unity)ने सेंट्रल पैनल के सभी पदों पर एबीवीपी(ABVP) (Akhil Bharatiya Vidyarthi Parishad)को हरा दिया। अदिति मिश्रा (आइसा), के गोपिका बाबू (एसएफआई), सुनील यादव (डीएसएफ) और दानिश अली (आइसा) क्रमशः अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव और संयुक्त सचिव पदों पर विजयी हुए हैं। आंतरिक समिति के चुनावों में भी, गर्विता (यूजी), श्रुति (पीजी), और परन अमिताव (पीएचडी) के प्रगतिशील पैनल ने एबीवीपी उम्मीदवारों के खिलाफ जीत हासिल की। सेंट्रल पैनल में एबीवीपी को मिली करारी हार के बाद लेफ्ट यूनिटी ने सभी विषयों के अधिकांश स्कूलों के कौंसिलों में भी इसी प्रकार की व्यापक जीत हासिल की है। इस प्रकार, लेफ्ट यूनिटी ने जेएनयू चुनाव में निर्णायक विजय हासिल की है और छात्रों ने एबीवीपी-आरएसएस के हिंदुत्ववादी, नव-फासीवाद, घृणा, पितृसत्ता और जातिवाद के प्रतिगामी ब्रांड को खारिज कर दिया है। यह जनादेश विश्वविद्यालय के समावेशी और प्रगतिशील चरित्र को पुष्ट करता है और नई शिक्षा नीति, निजीकरण और फंड में कटौती, परिसर-विशिष्ट पुस्तकालय निगरानी और सीपीओ मैनुअल के विरुद्ध छात्रों का एक मज़बूत रुख भी दर्शाता है।
पिछले एक दशक में, मोदी सरकार ने शिक्षा के निजीकरण के उद्देश्य से कई कदम उठाए हैं, जिनमें नई शिक्षा नीति (एनईपी) एक प्रमुख कदम है। इसके परिणामस्वरूप, शैक्षणिक ढाँचे को इस तरह से तैयार किया गया है कि छात्रों के लिए कैंपस की राजनीति में चर्चा करने या भाग लेने के अवसर कम हो जाएँ। इसके साथ ही, शिक्षा का बड़े पैमाने पर सांप्रदायीकरण हुआ है और यह अभियान आरएसएस और भाजपा द्वारा लगातार सक्रिय रूप से चलाया जा रहा है। जब से मोदी केंद्र की सत्ता में आए हैं, जेएनयू पर निशाना साधकर हमला किया जा रहा है और उसे बदनाम किया जा रहा है।जेएनयू संघ परिवार के हमलों का केंद्र बिंदु केवल इसलिए ही नहीं है कि वहां वामपंथी छात्र सक्रिय हैं, बल्कि इसलिए भी कि वे विश्वविद्यालय के मूल विचार -- तर्कसंगत सोच और वैज्ञानिक सोच के प्रति उसकी प्रतिबद्धता -- के भी विरोधी रहे हैं, जो आरएसएस की विचारधारा के लिए एक चुनौती है।
पिछले चुनावों में, एबीवीपी ने वामपंथी और प्रगतिशील छात्र समूहों के बीच एकता की कमी का फायदा उठाकर जेएनयू छात्र संघ (जेएनयूएसयू) में प्रवेश हासिल किया था। उन्होंने न केवल संयुक्त सचिव पद जीता था, बल्कि विभिन्न विभागों में काउंसिल की भी अच्छी-खासी संख्या में सीटें जीतीं थीं। जेएनयूएसयू में प्रवेश के बाद, एबीवीपी ने विश्वविद्यालय से संबंधित केंद्र सरकार के एजेंडे को आगे बढ़ाने में सहयोगी की भूमिका निभाई। वे जेएनयू प्रशासन द्वारा छात्र संघ की वैधता को नकारने के प्रयासों में शामिल हो गए और आंतरिक रूप से छात्रों के बीच फूट डालने का काम किया। हाल ही में उनकी सबसे उल्लेखनीय गड़बड़ी विजयादशमी के दौरान रावण के पुतले का दहन था, जिसमें उमर खालिद और शरजील इमाम जैसे लोगों के चेहरे थे। एक और विभाजनकारी प्रयास छात्रावास के भोजनालयों में शाकाहारी और मांसाहारी भोजन का विभाजन पैदा करना था। जेएनयू छात्र संघ के भीतर एबीवीपी ने अधिक संगठित तरीके से इस्लामोफोबिक और सांप्रदायिक माहौल बनाने की कोशिश की। अंतिम चुनाव परिणाम स्पष्ट रूप से छात्र समुदाय द्वार एबीवीपी की सांप्रदायिक और विभाजनकारी नीतियों को कठोरतापूर्वक ठुकराए जाने को दिखाता है।
जेएनयू के छात्रों के इस संघर्ष का प्रतिबिंब सिर्फ़ इसी परिसर तक सीमित नहीं रहा है। जेएनयू की राजनीति कभी भी परिसर के मुद्दों तक सीमित नहीं रही है। इसने प्रमुख राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी आवाज़ बुलंद की है। जेएनयू मुखर रहा है और दुनिया भर के सभी साम्राज्यवाद-विरोधी संघर्षों के साथ हमेशा एकजुटता में खड़ा रहा है, जिसमें अमेरिकी साम्राज्यवाद द्वारा समर्थित और संचालित इजरायली नरसंहार के ख़िलाफ़ फ़िलिस्तीनी संघर्ष भी शामिल है। जब भी इन मुद्दों से जुड़े आंदोलन या छात्रों की मांगों को लेकर परिसर में संघर्ष हुए हैं, संघ-नियंत्रित विश्वविद्यालय प्रशासन ने उन्हें विभिन्न तरीकों से दबाने की कोशिश की है। असहमति के स्वरों का दमन और भी कठोर संस्थागत रूप ले चुका है। संघर्षरत छात्रों को न केवल जुर्माना भरना पड़ा है, बल्कि उन्हें चुनाव लड़ने के अधिकार से भी वंचित कर दिया गया।
एसएफआई ने सार्वजनिक शिक्षा और परिसर में लोकतंत्र पर हर तरह के हमले के खिलाफ छात्रों को लगातार संगठित किया है। वामपंथ की इस भारी जीत के बाद, जो एबीवीपी-आरएसएस-प्रशासन गठजोड़ की छात्र-विरोधी नीतियों के खिलाफ एक स्पष्ट जनादेश है, तत्काल ध्यान सभी छात्रों के लिए परिसर वातावरण को सुरक्षित और समावेशी बनाने पर देना चाहिए। महिलाओं और लैंगिक अल्पसंख्यकों के लिए समानता का स्थान सुनिश्चित करने के लिए इस लड़ाई को और तेज़ किया जाना चाहिए। परिसर में लैंगिक हिंसा के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। इसलिए, हमें दो समानांतर लक्ष्यों को निर्धारित करना होगा : आंतरिक समिति के समुचित संचालन के माध्यम से परिसर को लैंगिक-संवेदनशील बनाना, और जीएससीएएसएच (जेंडर सेंसिटाइजेशन कमेटी अगेंस्ट सेक्सुअल हैरेसमेंट -- यौन उत्पीड़न के खिलाफ लैंगिक संवेदनशीलता समिति), जो एक अधिक लोकतांत्रिक निकाय था और जिसे 2017 में आरएसएस-समर्थित प्रशासन ने भंग कर दिया था, को फिर से गठित करने के आंदोलन को मजबूत करना। इसके अलावा, जिस तरह देश भर में जाति-आधारित उत्पीड़न बढ़ा है, उसका प्रतिबिंब जेएनयू में भी तेज़ी से दिखाई दे रहा है। छात्रसंघ का ध्यान समान अवसर प्रकोष्ठ के बेहतर कामकाज को सुनिश्चित करने पर होना चाहिए। दोनों के लिए संघर्ष को अब निर्णायक स्तर पर पहुंचाना होगा।
शिक्षा के केंद्रीकरण और निजीकरण के विरुद्ध भी एक सशक्त प्रतिरोध खड़ा किया जाना चाहिए। जेएनयू की प्रवेश परीक्षाओं के पैटर्न में हाल ही में हुए बदलावों ने प्रशासनिक हस्तक्षेप को बढ़ा दिया है, जिसका आरएसएस भरपूर लाभ उठा रहा है। इसके अलावा, पीएचडी प्रवेश के लिए वंचना अंक हटाने से वंचित वर्गों के छात्रों को अकल्पनीय बहुत नुकसान हुआ है। यह नीति शोध के क्षेत्र में महिलाओं की संख्या में प्रत्यक्ष रूप से गिरावट ला रही है। पहले, जेएनयू शोधकर्ताओं में महिलाओं की संख्या 50% से अधिक थी, लेकिन अब यह आंकड़ा घटकर 37% रह गया है। इस प्रवृत्ति को उलटना होगा।
छात्रों को वर्तमान में आवश्यक बुनियादी सुविधाओं जैसे छात्रावासों से वंचित रखा जा रहा है। इस वंचना के अधिकतर शिकार कमजोर सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले बाहरी छात्र हो रहे हैं। विश्वविद्यालय के सार्वजनिक चरित्र की रक्षा के लिए इन सुविधाओं को सुनिश्चित करना आवश्यक है। इसके साथ ही, जेएनयू को मोदी शासन के तहत गंभीर वित्तीय बाधाओं का सामना करना पड़ा है और इसके वित्त पोषण में लगभग 50% की कटौती की गई है। इससे केंद्रीय पुस्तकालय, प्रयोगशालाएं/कार्यशालाएं, अकादमिक कल्याण, भ्रमण और क्षेत्र के दौरे प्रभावित हुए हैं। नया छात्र संघ यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) और शिक्षा मंत्रालय को पर्याप्त सार्वजनिक धन उपलब्ध कराने के लिए मजबूर करने के लिए संघर्ष करेगा। वामपंथी छात्र गठबंधन (Leftist Student Alliance)ने छात्र संघ के चुनावों से पहले ही इन मांगों को प्रस्तुत किया था, और चुनाव परिणाम स्पष्ट रूप से, इन मुद्दों पर छात्रों के भारी समर्थन को दिखाते हैं। आने वाले दिनों में चुनौती और संघर्ष इस जनादेश को बनाए रखने और आरएसएस/एबीवीपी-प्रशासन गठजोड़ के खिलाफ एक मजबूत आंदोलन का निर्माण करने का होगा।
(लेखकद्वय जेएनयू के छात्र हैं। अनुवादक अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं। संपर्क : 94242-31650)