इसराइल-हमास संघर्ष: शांति, कूटनीति और डोनाल्ड ट्रंप।

By :  Newshand
Update: 2025-10-15 02:18 GMT


लगभग 2 वर्षों के बाद गाजा पट्टी में इसराइल हमास युद्ध अमेरिका (The Israel-Hamas War and the United States)के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्तता से थम गया है. इस समझौते में इसराइल के हमास द्वारा बनाए गए इसराइल नागरिक शेष 20 बंधक इसराइल को सौंपें दिए गए बदले में 1900 से ज्यादा बंधकों और फिलिस्तीन कैदियों को रिहा किया गयाl इस युद्ध में अरबों रूपयों का आर्थिक नुकसान हुआ और गाजा पट्टी फिलिस्तीन से एक लाख से ज्यादा नागरिक विस्थापित हुए हैं, और मारे गए इजराइल फिलिस्तीन नागरिकों की संख्या बहुत बड़ी है जिसकी सच्चाई का आकलन अभी तक नहीं किया जा पाया है। यह युद्ध विराम मानवता के लिए एक बड़ी राहत संधि मानी जा रही है। इसके बदले डोनाल्ड ट्रंप को इसराइल का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भी दिया गया है। डोनाल्ड ट्रंप के ताज में शांति समझौते का एक और नया हीरा जुड़ गया है। डोनाल्ड ट्रंप की नोबेल पुरस्कार प्राप्ति की आकांक्षा 2026 के लिए फिर शुरू हो गई वे अभी भी नोबेल पुरस्कार की दौड़ में बड़े आकांक्षी हैं।




इसराइल-हमास-गाज़ा पट्टी का संघर्ष दशकों से मध्य-पूर्व की राजनीति का सबसे गंभीर अध्याय रहा है। 1948 में इसराइल के गठन के साथ ही अरब-फ़िलिस्तीनी विवाद आरंभ हुआ और 1967 के युद्ध के बाद गाज़ा इसराइली नियंत्रण में आया। 2007 में हमास द्वारा गाज़ा पर नियंत्रण और इसराइल की नाकेबंदी ने तनाव को और गहरा किया। सितंबर 2023 में हमास ने अचानक इसराइल पर हमला कर लगभग 251 नागरिकों को बंधक बना लिया। इस हमले ने न केवल मध्य-पूर्व बल्कि विश्व-राजनीति को भी हिला दिया। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जिन्होंने पहले “अब्राहम समझौते” के माध्यम से अरब-इसराइल संबंधों में शांति का द्वार खोला था, ने इस संकट को अपनी नोबेल शांति पुरस्कार की आकांक्षा से जोड़ते हुए सक्रिय मध्यस्थता की। ट्रंप ने कतर, मिस्र, संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय साझेदारों के साथ मिलकर एक बहुपक्षीय शांति प्रारूप तैयार किया। उन्होंने इसे “ह्यूमैनिटी फर्स्ट इनिशिएटिव” नाम दिया और कहा कि “यदि यह समझौता सफल होता है तो मैं नहीं, बल्कि शांति खुद नोबेल की हक़दार होगी।” जनवरी 2025 में उनके नेतृत्व में हुए समझौते में 33 इज़राइली बंधकों की रिहाई हुई, जिनमें 25 जीवित और 8 मृत घोषित हुए। इसके बदले इसराइल ने लगभग 1,700 फ़िलिस्तीनी कैदियों को छोड़ा। यह “गाज़ा शांति चरण-1 समझौता” कहलाया। इसके बाद अक्टूबर 2025 में शेष 20 जीवित बंधक भी छोड़े गए, जिनकी वापसी को अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने ऐतिहासिक राहत माना। इस रिहाई और युद्धविराम की प्रक्रिया में अमेरिका और कतर के साथ भारत की भूमिका विशेष रूप से रेखांकित रही। भारत ने गाज़ा में मानवीय सहायता, चिकित्सा उपकरण, खाद्य सामग्री और राहत दल भेजे। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में दोनों पक्षों से संयम बरतने और आतंकवाद से मुक्त स्थायी शांति की अपील की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि “भारत आतंकवाद के खिलाफ है और निर्दोष जीवन की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करेगा।” भारत की यह संतुलित नीति — जहाँ एक ओर इसराइल के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन किया गया, वहीं फ़िलिस्तीनी नागरिकों की सुरक्षा पर भी जोर दिया गया,उसे एक विश्वसनीय मध्यस्थ छवि प्रदान करती है। दूसरी ओर, नाटो देशों की प्रतिक्रिया आरंभ में इज़राइल-समर्थक रही। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और कनाडा ने हमास के हमले को “आतंकी कार्रवाई” बताया और इज़राइल को सैन्य, तकनीकी और खुफिया सहायता दी। परंतु जैसे-जैसे गाज़ा में नागरिक हताहत बढ़े, यूरोपीय संघ और नाटो देशों में मतभेद उभरने लगे। फ्रांस और स्पेन जैसे देशों ने “मानवीय संघर्षविराम” का आग्रह किया जबकि अमेरिका ने मध्य-पूर्व में स्थायी शांति के लिए कूटनीतिक दबाव बनाए रखा। इस दौरान ट्रंप की व्यक्तिगत भूमिका सबसे निर्णायक बनी रही। उन्होंने कई बार सार्वजनिक रूप से कहा कि उनका प्रयास केवल राजनीतिक समाधान नहीं बल्कि “मानवता की बहाली” है, और उन्होंने इसे अपनी नोबेल शांति पुरस्कार की आकांक्षा से जोड़ा। अंतरराष्ट्रीय समुदाय में उन्हें शांति दूत बनाने का प्रयास किया गया है।



इसराइल–हमास–गाज़ा पट्टी का संघर्ष आधुनिक विश्व की सबसे जटिल मानवीय और राजनीतिक त्रासदियों में से एक है। गाज़ा पट्टी आकार में भले ही छोटी हो, परंतु इसका इतिहास, भू-राजनीति और संघर्ष की गहराई अत्यंत विशाल है। 1948 में इज़राइल राष्ट्र के गठन के साथ ही पहला अरब–इज़राइल युद्ध छिड़ गया था, जिसके बाद गाज़ा मिस्र के नियंत्रण में आया और 1967 के छह दिवसीय युद्ध में इज़राइल ने इस क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया। 1990 के दशक में ओस्लो समझौते के बाद सीमित स्वशासन वाली फिलिस्तीनी प्राधिकरण की स्थापना हुई, किंतु इसके कुछ ही वर्षों बाद हमास नामक संगठन ने धीरे-धीरे राजनीतिक प्रभाव बढ़ाया और 2006 में हुए चुनावों में अप्रत्याशित रूप से विजयी हुआ। 2007 में फतह के साथ संघर्ष के बाद हमास ने गाज़ा पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया। इसके बाद इज़राइल ने सुरक्षा कारणों से गाज़ा की सीमाओं को सील कर दिया और थल, जल, वायु मार्गों पर कड़ी नाकेबंदी लागू कर दी। इसी के साथ गाज़ा लगातार मानवीय संकट और अस्थिरता का केंद्र बन गया। सितंबर 2023 में विश्व समुदाय तब स्तब्ध रह गया जब हमास ने इज़राइल पर अचानक बड़े पैमाने पर हमला किया। इस हमले में रॉकेट बमबारी, सीमा पार घुसपैठ और नागरिकों पर हमले शामिल थे। हमास के लड़ाकों ने लगभग सात सौ इज़राइली नागरिकों और सैनिकों को बंधक बना लिया और उन्हें गाज़ा में अपनी पकड़ में रखा। यह घटना आधुनिक इज़राइल के इतिहास की सबसे बड़ी सुरक्षा विफलताओं में से एक मानी गई। इसके प्रतिकार में इज़राइल ने “ऑपरेशन आयरन स्वॉर्ड” नामक भीषण सैन्य अभियान शुरू किया जिसमें गाज़ा पर लगातार हवाई और ज़मीनी हमले किए गए। इस अभियान में हजारों इमारतें ध्वस्त हुईं, सैकड़ों नागरिक मारे गए और लाखों लोग विस्थापित हो गए। मिस्र, कतर और अमेरिका की मध्यस्थता से कई दौर की बातचीत के बाद कुछ बंधकों को मानवीय आधार पर छोड़ा गया, किंतु अधिकांश अब भी लापता हैं। इस युद्ध ने न केवल मध्य पूर्व बल्कि पूरी दुनिया को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर इस संघर्ष का अंत कहाँ है। गाज़ा में पहले से ही बिजली, पानी, दवाइयाँ और आवास जैसी सुविधाएँ सीमित थीं। अब स्थिति और भयावह हो गई है। संयुक्त राष्ट्र ने इसे 21वीं सदी के सबसे बड़े मानवीय संकटों में एक बताया। अस्पतालों में संसाधनों की कमी, बच्चों और बुजुर्गों की त्रासदी और शरणार्थी शिविरों में बढ़ती भीड़ इस संघर्ष की मानवीय कीमत को दर्शाती है। राजनीतिक दृष्टि से हमास इसे “प्रतिरोध का युद्ध” कहता है जबकि इज़राइल इसे “आतंकवाद के विरुद्ध निर्णायक लड़ाई” मानता है। दोनों पक्षों के अपने तर्क हैं, परंतु बीच में पिस रही है आम जनता, जिसकी पीड़ा किसी भी पक्ष के लिए प्राथमिकता नहीं रह गई है। भविष्य को लेकर तीन संभावनाएँ सामने आती हैं। पहली, निकट भविष्य में स्थिति में स्थायित्व नहीं आने वाला है। तब तक वहाँ की हर सुबह धुएँ और आँसुओं में डूबी रहेगी। यही आज की सबसे बड़ी सच्चाई है — कि युद्ध से कोई विजेता नहीं निकलता, केवल पीड़ा और विनाश शेष रह जाता है।

संजीव ठाकुर,चिंतक,लेखक स्तंभकार

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