पाकिस्तान के लिए मौन, भारत के लिए संयम: यही है वैश्विक न्याय?

By :  Newshand
Update: 2025-06-07 10:04 GMT

क्या वैश्विक मंच आतंक के सौदागरों का शरणस्थल बन गया है?



ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor)की गूंज ने न केवल भारत-पाकिस्तान सीमा को हिलाकर रख दिया, बल्कि वैश्विक कूटनीति के गलियारों में भी तीखी बहस छेड़ दी। 6 और 7 मई 2025 की मध्यरात्रि को भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान और पीओके में नौ आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए, जो पहलगाम आतंकी हमले का जवाब थे, जिसमें 22 अप्रैल को 26 निर्दोष पर्यटक मारे गए थे। यह कार्रवाई भारत की आतंकवाद के खिलाफ जीरो-टॉलरेंस नीति का दमदार संदेश थी। लेकिन इसके बाद की घटनाएँ—आईएमएफ, विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक से पाकिस्तान को मिली अरबों डॉलर की आर्थिक सहायता, और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उसे मिली प्रतिष्ठित नियुक्तियाँ—ने वैश्विक समुदाय के रुख पर गहरे सवाल खड़े किए। क्या यह आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में दोहरे मापदंडों का खेल है? भारत और विश्व के दृष्टिकोण से यह स्थिति न केवल चिंताजनक है, बल्कि एक ऐसी चुनौती है, जो सच्चाई और न्याय की माँग करती है।

भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के जरिए साफ कर दिया कि आतंकवाद के खिलाफ उसकी लड़ाई अब केवल शब्दों तक सीमित नहीं है। पहलगाम हमले की जिम्मेदारी लेने वाले लश्कर-ए-तैयबा के छाया संगठन 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' के तार सीधे पाकिस्तान से जुड़े थे। भारत ने न केवल सैन्य ताकत दिखाई, बल्कि वैश्विक मंच पर कूटनीतिक आक्रामकता भी अपनाई। सात सर्वदलीय सांसद डेलिगेशन अमेरिका, ब्रिटेन, और दक्षिण अफ्रीका जैसे यूएनएससी सदस्य देशों में भेजे गए, ताकि पाकिस्तान की आतंकवाद-समर्थक नीतियों को बेनकाब किया जाए। लंदन में भारतीय उच्चायुक्त विक्रम दोराईस्वामी ने बीबीसी पर बेबाकी से कहा - अगर पाकिस्तान को ऑपरेशन सिंदूर से दिक्कत है, तो वह आतंकवादियों के साथ खड़ा है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने दोहराया कि कश्मीर पर कोई बातचीत केवल पीओके की वापसी और आतंकवाद के मुद्दे पर होगी। यह दृढ़ता भारत की बढ़ती वैश्विक साख और उसकी सैन्य-कूटनीतिक शक्ति का प्रतीक है।

इसके उलट, पाकिस्तान ने अपनी कमजोर स्थिति को छिपाने के लिए आर्थिक और कूटनीतिक चालें चलीं। 9 मई 2025 को आईएमएफ ने उसे 1 अरब डॉलर की किश्त दी। इसके बाद विश्व बैंक ने 40 अरब डॉलर (2026-2035) की योजना और एशियाई विकास बैंक ने 800 मिलियन डॉलर की सहायता मंजूर की। यह आर्थिक सहायता उस समय आई, जब पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था भारी कर्ज, मुद्रा अवमूल्यन, और महंगाई के दलदल में फँसी है। लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात 4 जून 2025 को हुई, जब पाकिस्तान को यूएनएससी की तालिबान प्रतिबंध समिति का अध्यक्ष और आतंकवाद-रोधी समिति का उपाध्यक्ष चुना गया। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इसे अपनी आतंकवाद-रोधी प्रतिबद्धता का सबूत बताया, दावा करते हुए कि पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ 90,000 लोगों की जान और 150 अरब डॉलर का नुकसान सहा है। लेकिन यह दावा हास्यास्पद है। लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों को पाकिस्तान में खुली छूट है। हाल ही में पंजाब विधानसभा के स्पीकर मलिक अहमद खान को लश्कर के नेताओं के साथ रैली में देखा गया। ऐसे में शरीफ का 'आतंकवाद-विरोधी' दावा खोखला लगता है।

वैश्विक समुदाय का रवैया इस स्थिति को और जटिल बनाता है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भारत और पाकिस्तान से संयम की अपील की, लेकिन आतंकवाद के मूल स्रोत—पाकिस्तान—पर कोई ठोस कार्रवाई की माँग नहीं की। यह दोहरा मापदंड भारत के लिए निराशाजनक है, जो लंबे समय से टीआरएफ जैसे संगठनों पर प्रतिबंध की माँग करता रहा है। पाकिस्तान की रणनीति स्पष्ट है: वह अपनी आर्थिक बदहाली और सैन्य कमजोरी को छिपाने के लिए वैश्विक मंचों पर 'शांति' और 'आतंकवाद-विरोधी' छवि बनाना चाहता है। शरीफ ने तुर्की, ईरान, और अजरबैजान का दौरा कर भारत के खिलाफ समर्थन जुटाने की कोशिश की, लेकिन सऊदी अरब और यूएई जैसे प्रमुख मुस्लिम देशों ने दूरी बनाए रखी। यह पाकिस्तान की कूटनीतिक विफलता को उजागर करता है।

भारत ने इस चुनौती का जवाब और आक्रामक कूटनीति से दिया। सर्वदलीय डेलिगेशन ने वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान के आतंकवाद-समर्थन को बेनकाब किया। भारत ने स्पष्ट किया कि ऑपरेशन सिंदूर आतंकी ठिकानों पर केंद्रित था, न कि पाकिस्तानी सेना पर। इसके साथ ही, भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित करने का कड़ा कदम उठाया, जिसने पाकिस्तान पर आर्थिक और कूटनीतिक दबाव बढ़ाया। भारत की यह रणनीति न केवल उसकी सैन्य ताकत, बल्कि उसकी वैश्विक साख को भी रेखांकित करती है।

यह स्थिति वैश्विक समुदाय के लिए एक लिटमस टेस्ट है। पाकिस्तान को यूएनएससी में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ देना, जबकि वह आतंकवादी संगठनों का समर्थन करता है, वैश्विक आतंकवाद-रोधी प्रयासों को कमजोर करता है। भारत को अब अपनी कूटनीतिक और सैन्य ताकत का और प्रदर्शन करना होगा, ताकि वैश्विक समुदाय पर दबाव बने। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में दोहरे मापदंड स्वीकार्य नहीं हैं। भारत का संदेश साफ है: आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते।

ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की ताकत और संकल्प को दुनिया के सामने ला दिया। यह न केवल एक सैन्य कार्रवाई थी, बल्कि एक वैश्विक संदेश था कि भारत अब आतंकवाद के खिलाफ चुप नहीं रहेगा। पाकिस्तान की आर्थिक सहायता और कूटनीतिक नियुक्तियाँ उसकी कमजोरियों को छिपाने की कोशिश मात्र हैं। लेकिन सच्चाई छिप नहीं सकती। वैश्विक समुदाय को अब यह तय करना है कि वह आतंकवाद के खिलाफ भारत के दृढ़ रुख के साथ खड़ा है, या पाकिस्तान की दोहरी नीतियों का समर्थन करता है। भारत ने अपनी बात कह दी है; अब दुनिया की बारी है कि वह सही और गलत के बीच चयन करे।





         प्रो. आरके जैन “अरिजीत

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