चूहे खा गए दो जिन्दा नवजात बच्चों को ,बीजेपी है तो मुमकिन है
चूहे काटते रहे, तंत्र सोता रहा – दो नन्ही जानें गईं
लापरवाही का काला अध्याय: अस्पताल की दीवारों में दुबकी मौत
मध्य प्रदेश के इंदौर(Indore, Madhya Pradesh), जो स्वच्छता का प्रतीक माना जाता है, वहां के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में चूहों का आतंक और दो नवजातों की दिल दहलाने वाली मृत्यु ने स्वास्थ्य व्यवस्था की भयावह विफलता को उजागर कर दिया है। यह अस्पताल(Maharaja Yeshwantrao Hospital), जो लाखों मरीजों की उम्मीदों का आधार है, वहां नवजात गहन चिकित्सा इकाई जैसे अति संवेदनशील वार्ड में चूहों ने कहर ढाया। 24 अगस्त को एक 10 दिन की बच्ची को 31 अगस्त को चूहों ने काट लिया, और 2 सितंबर को उसकी सांसें हमेशा के लिए थम गईं। इसके बाद, 3 सितंबर को एक और नवजात की मृत्यु ने पूरे तंत्र को हिलाकर रख दिया। अस्पताल प्रशासन इसे जन्मजात हृदय रोग और संक्रमण का परिणाम बताता है, मगर बेखौफ विचरण करते चूहे, एक बच्चे के सिर और कंधे पर काटने के निशान, और दूसरे की उंगलियों पर घाव सच्चाई को चीख-चीखकर उजागर करते हैं। यह लापरवाही का वह घृणित चेहरा है, जहां मासूमों की जान तक को खतरा है।(Two children died in the hospital due to rats)
यह त्रासदी केवल एक अस्पताल की कहानी नहीं, बल्कि पूरे राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली का द्योतक है। स्वच्छता का अभाव, रखरखाव में घोर लापरवाही, और निगरानी की कमी ने चूहों को वार्डों में खुला निमंत्रण दिया। वर्षों से पेस्ट कंट्रोल के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया। हाल की बारिश ने जलभराव से स्थिति को और विकराल बना दिया, जिससे चूहे पाइपों के रास्ते नवजात इकाई तक पहुंच गए। स्टाफ को इस संकट की जानकारी थी, फिर भी उनकी उदासीनता ने हालात को और बदतर किया। परिजनों द्वारा लाया गया भोजन चूहों को आकर्षित करता रहा, लेकिन इसका कोई समाधान नहीं खोजा गया। 12 हजार से अधिक चूहों को मारने का दावा महज एक खोखला वादा साबित हुआ, क्योंकि खतरा अब भी बरकरार है। इंदौर, जो स्वच्छता में देश का गौरव है, वहां अस्पतालों में चूहों का राज शर्मिंदगी का सबब है। यह विडंबना दर्शाती है कि स्वच्छता अभियान केवल सतही चमक तक सीमित है, जबकि जमीनी हकीकत रोंगटे खड़े करने वाली है।
राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था की जर्जर और शोचनीय स्थिति कोई छिपा रहस्य नहीं। चिकित्सकों की घोर कमी, जीर्ण-शीर्ण उपकरण, और कर्मचारियों की अपर्याप्त संख्या ने अस्पतालों को निष्क्रियता की गहरी खाई में धकेल दिया है। नवजात गहन चिकित्सा इकाई, जहां अति सतर्कता और सुरक्षा अनिवार्य है, वहां बुनियादी संरक्षण का अभाव है। ऐसी हृदयविदारक घटनाएं व्यवस्थागत सड़ांध की क्रूर गवाही देती हैं, जहां लापरवाही बार-बार मासूमों की जिंदगी छीन रही है। विपक्ष ने इसे सरकार की घनघोर विफलता करार देते हुए न्यायिक जांच की मांग की है। माता-पिताओं के दिलों में भय का साया पसरा है—यदि अस्पतालों में नवजात शिशु असुरक्षित हैं, तो निर्धन परिवार अपनी उम्मीदें कहां टिकाएं? स्वास्थ्य असमानता अपने चरम पर है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां सुविधाएं दयनीयता की हदें पार करती हैं। यह त्रासदी समाज के सबसे कमजोर तबके की दुर्दशा को नंगा करती है, जो निजी अस्पतालों के खर्च से वंचित हैं।
प्रशासन ने कुछ कदम उठाए, मगर ये नाकाफी और विलंबित हैं। दो नर्सिंग अधिकारियों का निलंबन, नर्सिंग अधीक्षक का स्थानांतरण, और सफाई-पेस्ट कंट्रोल कंपनी पर एक लाख रुपये का जुर्माना महज सतही दिखावा है। साप्ताहिक पेस्ट कंट्रोल, खिड़कियों पर लोहे की जालियां, 24 घंटे निगरानी, और बाहर के भोजन पर प्रतिबंध जैसे निर्देश अब जारी हुए हैं। एक उच्चस्तरीय समिति सात दिनों में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी, और राज्य मानवाधिकार आयोग ने सवाल उठाया है कि चूहे वार्ड तक कैसे पहुंचे। किंतु क्या ये उपाय भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोक पाएंगे? जवाबदेही सुनिश्चित किए बिना सुधार अधूरे हैं। कर्मचारियों की नियमित ट्रेनिंग, कठोर निरीक्षण, और बजट का पारदर्शी आवंटन अनिवार्य है। कंपनी को चेतावनी दी गई, पर सजा की प्रभावशीलता संदिग्ध है। यह प्रश्न अब भी अनुत्तरित लटका हुआ है, जो व्यवस्था की नाकामी को और गहरा करता है।
यह त्रासदी समाज की आत्मा को झकझोर देने वाली है। अस्पताल, जो जीवन की रक्षा का पवित्र मंदिर होना चाहिए, मृत्यु के भयावह अड्डों में तब्दील हो रहे हैं। माता-पिताओं का विश्वास चूर-चूर हो चुका है, और निर्धन परिवारों की अंतिम उम्मीदें राख में मिल रही हैं। सरकार को तत्काल सभी सरकारी अस्पतालों का गहन ऑडिट कराना होगा। पेस्ट कंट्रोल को अनिवार्य बनाना, कर्मचारियों की कठोर जवाबदेही सुनिश्चित करना, और नवजात स्वास्थ्य कार्यक्रमों को अटल आधार देना समय की पुकार है। स्वास्थ्य बजट में व्यापक वृद्धि कर जर्जर बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ करना अनिवार्य है। पारदर्शिता और कठिन निगरानी के अभाव में कोई सुधार संभव नहीं। यह घटना महज एक हादसा नहीं, बल्कि व्यवस्था की गहरी खाइयों का क्रूर दर्पण है। यदि चूहों जैसे छोटे खतरे को अनदेखा किया गया, तो यह और भी भयंकर त्रासदियों को निमंत्रण देगा।
यह समय केवल शोक में डूबने का नहीं, बल्कि निर्णायक और ठोस कदम उठाने का है। सरकार को स्वास्थ्य को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी, विशेषकर उस राज्य में जहां जनसंख्या का दबाव असहनीय है। नवजातों की सुरक्षा सुनिश्चित करना केवल प्रशासन का कर्तव्य नहीं, बल्कि पूरे समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है। यह त्रासदी परिवर्तन का एक सशक्त उत्प्रेरक बने, ताकि कोई और मासूम चूहों की क्रूरता का शिकार न हो। अस्पतालों को मृत्यु का अखाड़ा नहीं, बल्कि जीवन का संरक्षक बनाना होगा। जनता का विश्वास तभी लौटेगा, जब स्वास्थ्य व्यवस्था में पारदर्शिता, जवाबदेही, और मानवता का संचार होगा। यह घटना भूलने की नहीं, बल्कि गहरे सबक लेने की है, ताकि भविष्य में कोई और नन्हा जीवन इस घृणित लापरवाही का बलिदान न बने। मध्य प्रदेश को इस कलंक को मिटाने के लिए अब त्वरित, कठोर, और प्रभावी कदम उठाने होंगे।
प्रो. आरके जैन “अरिजीत