भाजपा के मणिपुर राज में पीड़ा से कराहते, डरे सहमे और असुरक्षित नागरिक

By :  Newshand
Update: 2025-09-22 01:20 GMT

मोदी का मणिपुर पर्यटन

आलेख : बादल सरोज

पूरे 2 साल 4 महीने 10 दिन बाद देश के प्रधानमंत्री को मणिपुर की याद आई और 13 सितम्बर को वे पर्यटन करने, पीड़ा से कराहते, डरे सहमे और असुरक्षित नागरिकों(Under BJP rule in Manipur, citizens are suffering, scared and insecure.) के बीच जा पहुंचे। 3 मई 2023 को इस छोटे से प्रदेश में दो बड़े समुदायों के बीच हिंसक टकराव की शुरुआत हुई थी, जो जल्दी ही कुकी आदिवासियों के नरसंहार में बदल गयी। जिस पार्टी के नेता के नाते मोदी प्रधानमत्री बने हैं, उस पार्टी की ही सरकार मणिपुर में थी और इस बात के सैकड़ों प्रमाण देश भर की जनता ने देखे, जो इस बात की ताईद करते थे कि प्रदेश की सरकार और उसका मुख्यमंत्री उस हिंसा को रोकने का राज धर्मं निबाहने की बजाय खुद एक पक्ष बना हुआ था। उसके नियंत्रण वाली पुलिस हमलावर दस्तों की मददगार बनी हुई थी, थानों की बंदूकें कुकी आदिवासियों के खिलाफ इस्तेमाल की जा रही थीं ; एक गृहयुद्ध जैसी स्थिति में मणिपुर फंसा हुआ था और पूरे देश से आवाज उठने के बाद भी प्रधानमंत्री न मणिपुर के बारे में कुछ बोलने को तैयार थे – न वहां की पीड़ित जनता के साथ बैठकर उन्हें राहत और आश्वस्ति देने इस प्रदेश का दौरा ही करने को राजी थे। इस हिंसा के दौरान कोई 300 से ज्यादा लोगों को मार डाला गया ; करीब 60 हजार घरों को या तो जला दिया गया या उनमें रहने वाले बेदखल कर शरणार्थी शिविरों में रहने के लिए मजबूर कर दिए गए। महज 30 लाख की जनसँख्या वाले प्रदेश के लिए ये संख्याएं बहुत ज्यादा ही ज्यादा हैं। इस दौरान महिलाओं को निर्वस्त्र करके सार्वजनिक रूप से घुमाने सहित जो वीभत्स दरिंदगी हुईं है, उनकी जितनी खबरें बाहर आ पाईं, उतनी ही स्तब्ध करने वाली हैं ; न जाने कितनी ही और हैं, जिन्हें इन्टरनेट जाम और आवागमन पर रोक लगाकर बाहर नहीं आने दिया गया। ऐसे मणिपुर में, वह जिस देश का एक प्रदेश है, उसके प्रधानमंत्री के पास वहां जाने या उसकी समस्या को सुलझाने का समय नहीं था। ढीठता इतनी थी कि इस हिंसा के जिम्मेदार और अपनी जिम्मेदारी निबाहने में पूरी तरह असफल रहे भाजपाई मुख्यमंत्री का इस्तीफा तक नहीं लिया – उसे हटाकर राष्ट्रपति शासन लगाने में पूरे एक साल और नौ महीने लगा दिए। ये चंद बातें मणिपुर की त्रासदी की सिर्फ झलक भर देती हैं – इन्हें दर्ज किया जाना इसलिए सामयिक है, ताकि 3-4 घंटे के मणिपुर पाखंड की असंवेदनशीलता, पीड़ित जनता के दुखों के प्रति अवज्ञा और मोदी के आत्ममुग्धता विकार के उच्चतर स्तर पर पहुँच जाने की अवस्था को समझा जा सके।





 




शोक में डूबे मणिपुर में मोदी की यात्रा के कार्यक्रमों की शुरुआत में उनकी शान में कुकी आदिवासियों का पारम्परिक लोकनृत्य किया जाना शामिल था। महामहिम के स्वागत में ‘वेलकम डांस’ करते हुए उन्हें नाचना और गाना था, जो पिछले सवा दो साल से मुस्कुराए तक नहीं है ; जिनका एक बड़ा हिस्सा अपने ही घरों से बेघर होकर उन शिविरों में रहने के लिए मजबूर है, जहां न पीने को शुद्ध पानी है, न निबटने के लिए कोई व्यवस्थित इंतजाम है। परपीड़क मानसिकता वाले इस अनुरोध को ठुकराते हुए पारम्परिक लोकनृत्य के समूह ने इन शब्दों में व्यक्त किया कि “अभी हमारा रुदन और विलाप रुका नहीं है, आंसू सूखे नहीं है, ज़ख्म भरे नहीं है, हम भीगी आँखों से कैसे नाच सकते हैं।“ इतनी देर बाद, सो भी मात्र 3 घंटे – असल यात्रा 3 घंटे की ही थी, वह तो बारिश की वजह से हेलीकोप्टर न उड़ पाने के चलते एक घंटा अधिक लग गया – के क्षणिक प्रवास में भी, प्रधानमंत्री जी के सत्कार में नाच गाना चाहिए था, तो चाहिए ही था, क्योंकि वे मणिपुर किसी के घाव भरने, सुलगती चिंगारियों पर पानी डालने नहीं, पर्यटन पर गए थे।



वे दुखद तस्वीरों से अपने पर्यटन की धजा बिगाड़ना नहीं चाहते थे, इसलिए उन राहत शिविरों में झांके तक नहीं, जिनमे दो-दो साल से रहने के लिए लोग मजबूर हैं। उनके आने की सूचना सार्वजनिक होने के बाद पीड़ितों, विस्थापितों के कई संगठनों ने उनसे अनुरोध किया था, खुद उनकी पार्टी के कुकी समुदाय से जुड़े भाजपा विधायकों तक ने उनसे आग्रह किया था कि वे शिविरों में आयें और वहां रहने वालों से संवाद करें – उन्हें ढाढस बंधायें, उनकी भावनाओं को समझें, अपेक्षाओं को जाने ; मगर पर्यटन पर गए राजा के पास इतना समय नहीं था ; वह यह सब करने गया भी नहीं था। लेकिन लगता है, उनके आयोजकों-प्रायोजकों ने फूहड़ता की सभी सीमाएं लांघने की ठानी हुई थी। जब मणिपुरी नाचने-गाने के लिए तैयार नहीं हुये, तो तेज बारिश के बीच स्कूली बच्चों को ही लाकर सड़क किनारे खड़ा कर दिया और खबरों के अनुसार उनके नन्हे-नन्हे हाथों में भाजपा के झंडे थमाने की हर संभव कोशिश की गयी ; हालांकि बच्चे भी इसके लिए राजी नहीं हुए, उन्होंने भाजपा के नहीं, राष्ट्रीय झंडे को पकड़ा, मगर गोदी मीडिया भी उनके चेहरों पर दर्ज बेरुखी और असंतोष को छुपा नहीं पाया। पूरे मणिपुर में 'मोदी वापस जाओ' के नारों के बीच प्रधानमंत्री का पर्यटन चलता रहा।




 




लोकतान्त्रिक देश की सर्वोच्च जिम्मेदारी के पद पर बैठे होने के नाते प्रधानमंत्री का काम था कि वे जो फांक बन गयी है, उसे पूरें ; जो खाई चौड़ी होती जा रही है, उसे मूंदें ; मैतेई और कुकी दोनों समुदायों को साथ बिठाकर उनके बीच संवाद स्थापित करें, गर्माहट को शांत करें – मगर बजाय ऐसा करने के उन्होंने दोनों समुदायों से अलग-अलग बातचीत करने का वह रास्ता चुना, जो विभाजन को और बढाने वाला था। उस संवाद के भी जितने विडियो आये हैं, वे दिखाते कम हैं, छुपाते ज्यादा हैं। ऐसा पहली बार हुआ जब प्रधानमंत्री के वीडियोज म्यूट – आवाज बंद करके – जारी किये गए। मगर ये बेआवाज वीडियो बिना आवाज के भी इस संवाद की निरर्थकता को उजागर कर देते हैं। एक वीडियो – जो प्रधानमंत्री कार्यालय और समाचार एजेंसी दोनों ने जारी किया है, उसमें बिलखती हुई एक लड़की अपनी व्यथा सुना रही है, कथा इतनी दारुण है कि उसके साथ खड़ी महिला भी अपने आंसू नहीं रोक पर रही है, लेकिन उसे सुनने वाला प्रधानमंत्री भावविहीन चेहरा बनाए बैठा है। अभी तक यह नहीं बताया गया कि, भले अलग-अलग ही की गयी, मगर बातचीत क्या की गयी, उसमें उठाये गए सवालों पर प्रधानमंत्री ने क्या जवाब दिए, किस तरह के आश्वासन दिए गए।




इस पर्यटन और प्रचार यात्रा ने मणिपुर को कितना शांत किया, यह उनकी यात्रा के शुरू होने के एक दिन पहले उनके स्वागत में लगे पोस्टर्स-होर्डिंग्स को फाड़ कर और यात्रा के अगले दिन पुलिस थाने को घेरकर गिरफ्तार किये गए युवाओं को रिहा कराने के लिए बड़ी संख्या में इकट्ठा हुई उत्तेजित भीड़ ने साफ़ कर दिया। इस सब पर पर्दा डालने के लिए ही प्रधानमंत्री ने उसी तरह की खोखली घोषणाओं की झड़ी लगा दी, जैसी वे आम तौर से करते रहते हैं। मणिपुर में तो वे यह भी भूल गए कि जो एलान वे कर रहे हैं, उनका इस प्रदेश की वास्तविकता से कोई संबंध भी है कि नहीं !! जैसे उन्होंने जिरीबाम-इंफाल रेलवे लाइन में 22,000 करोड़ रुपये के निवेश पर ज़ोर दिया और दावा किया कि 2014 के बाद से -- जब से वे प्रधानमंत्री बने हैं -- उनका ध्यान मणिपुर की कनेक्टिविटी पर काम करने पर रहा है। जबकि असलियत यह है कि मणिपुर का एकमात्र रेलवे स्टेशन, पिछले सवा दो साल से यात्रियों के लिए बंद पड़ा है। न कोई नागरिक यहाँ से गया है, न आया है !! इसी रौ में उन्होंने इंफाल से आने-जाने के लिए हेलीकॉप्टर सेवाओं की बात की। यह ऐसी बात थी, जिसका एलान इन्हीं के गृह मंत्री अमित शाह एक साल पहले ही कर चुके थे। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना था कि कुकी समुदाय राज्य की राजधानी में स्थित राज्य के एकमात्र चालू हवाई अड्डे  तक पहुंच सके। यह बात अलग है कि उन्हें इसका लाभ कभी नहीं मिल सका – क्योंकि कुकियों को डर है कि अगर वे इंफाल में प्रवेश करेंगे, तो उन पर हमला हो सकता है। वे आज भी दूर नागालैंड के हवाई अड्डों का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर हैं।



निर्लज्जता की हद यह थी कि जिस मणिपुर में गाँव जला दिए गए, घर तबाह कर दिए गए और 60 हजार से ज्यादा लोग बेघर कर दिए गए, उस मणिपुर में प्रधानमंत्री ने 60,000 परिवारों को पक्के मकान बनाकर दे दिए जाने का दावा भी ठोंक दिया। जहां खुद सुरक्षा बलों ने दोनों समुदायों के बीच खाकी वर्दी की दीवार खड़ी करके आवाजाही रोककर रखी हुई है, वहां मोदी बखान कर रहे थे कि 2014 से पहले मणिपुर में ‘गांवों में जाना मुश्किल’ था, लेकिन उनके नेतृत्व में सड़कें राज्य के दूर-दराज़ के इलाकों को भी जोड़ चुकी हैं। जो प्रदेश आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक -- तीनों तरह के विनाश की कठिन हालात से गुजर रहा था, उस प्रदेश के चुराचांदपुर में कुकी और इंफाल मेतेई समुदायों से ‘विकास’ की ओर ध्यान देने की अपील कर रहे थे और चुराचांदपुर में 7,000 करोड़ रुपये से अधिक की परियोजनाओं की आधारशिला रखने और इनसे ‘मणिपुर और पहाड़ों में रहने वाले लोगों के जीवन को बेहतर’ बन जाने का दावा कर रहे थे।



इस दिखावे और पाखंड को खुद उनकी अपनी पार्टी भाजपा भी समझ रही थी – उनकी यात्रा का शोर शुरू होने के साथ ही दो पूर्व विधायकों सहित उनके कई नेता भाजपा छोड़ रहे थे। प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान उन्हें सौंपे गए एक संयुक्त ज्ञापन में भाजपा के 11 विधायक शीघ्र राजनीतिक समाधान का आग्रह करते हुए राज्य पर ‘अभूतपूर्व जातीय उत्पीड़न’ में मिलीभगत का आरोप लगा रहे थे। उन्हें बता रहे थे कि किस तरह ‘मणिपुर को घाटी क्षेत्रों से पूरी तरह से अलग कर दिया गया है, उन्हें शर्मिंदा किया गया है, उन पर हमला और महिलाओं से बलात्कार किया गया है, उन्हें तबाह कर दिया गया है। प्रधानमंत्री से बातचीत में तेज़ी लाने और विधानसभा के साथ एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने की अपील कर रहे थे। इन सबके बारे में प्रधानमंत्री कितने गंभीर थे, यह उन्होंने अगले ही दिन असम में भव्य स्वागत का जश्न मनाकर और खुद को शिव का भक्त बताते हुए सारा जहर निगल लेने और अपने साथ माँ कामाख्या का आशीर्वाद होने की बात कहकर जाहिर कर दिया।

मोदी का मणिपुर पर्यटन भारत के लोकतान्त्रिक इतिहास में एक सत्ताप्रमुख द्वारा अपने ही देश के एक हिस्से में बसे लोगों के साथ किया ऐसा मखौल है, जिसका कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता ; यह एक व्यक्ति का आचरण नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी प्रवृत्ति का व्यवहार है, जिसका संवैधानिक दायित्व, मानवीय संवेदनाओं के साथ कोई रिश्ता नहीं है ; जिसके लिए हर विभाजन उसका राज बनाए रखने की कुंजी है, हर विग्रह उसकी राजनीतिक गोटी तर करने का जरिया है। आज यह मणिपुर के साथ घटा है – कल यह बाकियों के साथ घटेगा।

(लेखक 'लोकजतन' के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा  के संयुक्त सचिव हैं। संपर्क : 94250-06716)

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