हरियाणा में जीते जी ... "सिस्टम से संघर्ष" सुसाइड के बाद किस "सिस्टम की सजा

By :  Newshand
Update: 2025-10-13 12:56 GMT

जीते जी ... "सिस्टम से संघर्ष" सुसाइड के बाद किस "सिस्टम की सजा" !

मृतक का न पोस्टमार्टम, न अंतिम संस्कार, संवेदनहीनता का चेहरा उजागर

पत्नी धर्म और सती के सतीत्व के सामने बेबस दिखाई दे रहा पूरा सिस्टम

अमनीत पी कुमार अधिकारी से पहले दिवंगत आईपीएस वाई पूरन की धर्मपत्नी

इस सुसाइड मामले में सीबीआई जांच से सिस्टम को आखिर क्या और कौन सी परेशानी

फतह सिंह उजाला

वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एडीजीपी रैंक के आईपीएस वाई पूरन कुमार के द्वारा सुसाइड किया जाने की खबर समय के साथ सामान्य खबर का रूप लेती हुई महसूस की जा सकती है। लेकिन इसकी पृष्ठभूमि इतनी अधिक मजबूत है कि सुसाइड किया खबर अथवा मामला पूरे सिस्टम के लिए कहीं ना कहीं अब एक चैलेंज बन गया है । सरकार और सरकारी तंत्र के साथ-साथ सिस्टम को चलाने वाले अधिकारी संविधान के दायरे में ही काम करने के वचनबद्ध होते हैं । लेकिन भारतीय सनातन में सर्वोपरि इंसानियत - नैतिकता को आज भी माना जाता है। यही कारण है कि अदालत में शपथ लेने और दिलाने का सिलसिला आज भी कायम है।




आईपीएस अधिकारी दिवंगत वाई पूरन कुमार के द्वारा करीब एक सप्ताह पहले सुसाइड कर लिया गया । कारण जो भी रहे ? उसका उन्होंने अपने सुसाइड नोट में विस्तार से खुलासा भी किया है। विशेष परिस्थिति से अलग सामान्य हालत में दिवंगत व्यक्ति का अंतिम संस्कार निकट सगे परिजनों संबंधियों के पहुंचने और सूर्य अस्त से पहले कर दिया जाता है, यह अनादि काल से चली आ रही भारतीय सनातन संस्कृति के साथ-साथ सामान्य भाषा में इंसानियत और नैतिकता कहा गया है। आईपीएस अधिकारी के मामले में घटना और हालात दोनों पूरी तरह से अलग हैं । अलग ही नहीं है, अभी तक जो तथ्य सामने दिखाई दे रहे हैं उन्हें देखते हुए सिस्टम के लिए चैलेंज कहा जा सकता है।







पति और पत्नी बेशक से सरकारी सेवा में रहते हुए सिस्टम के सर्वोच्च पदों पर सेवारत हो । लेकिन हकीकत यही है कि पत्नी के लिए उसका पति निश्चित रूप से परमेश्वर के समक्ष ही होता है। वरिष्ठ आईएएस अधिकारी श्रीमती अमनीत पी कुमार अपने पति के सुसाइड किए जाने की घटना के बाद से देखा जाए तो पत्नी धर्म को निभाते हुए एक प्रकार से अपने सती के सतीत्व की बदौलत पूरे सिस्टम के सामने पति के इंसाफ के इंसाफ के लिए एक मजबूत - अभेद्य ढाल बनकर खड़ी हुई दिखाई दे रही है। भारतीय सनातन संस्कृति में कहा भी गया है एक नारी- स्त्री, शारीरिक, दिमागी और मानसिक रूप से जितना अधिक मजबूत हो सकती है । उसके मुकाबले अन्य किसी और का मजबूत होना सहज कार्य नहीं है । यह बात अलग है कि दिवंगत आईपीएस की पत्नी भी सिस्टम में एक प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर सेवारत है। यहां यह बात कहने में कोई झिझक नहीं है ,यदि यह घटना सिस्टम के सर्वोच्च पदों पर सेवारत अधिकारी परिवार से संबंधित ना होती तो अभी तक कोई ना कोई समाधान किसी न किसी प्रकार से निकाल लिया जाता। कथित रूप से यहां मामला पूरे सिस्टम को चलाने वाले अधिकारियों से ही जुड़ा हुआ है। संभवत यही अबूझ पहेली और अनसुलझा सवाल सिस्टम के सामने एक चैलेंज भी बन गया है। सिस्टम में शामिल सिस्टम से बाहर अनगिनत व्यक्ति अपनी संवेदनाएं व्यक्त करने पहुंच रहे हैं । लेकिन जिन संवेदनाओं से समाधान होना चाहिए , वह संवेदना ही संवेदनहीन बनी हुई है।




इस पूरे घटनाक्रम को यदि दूसरे नजरिए से देखें इस प्रकार की घटना -हादसा यदि किसी भी सर्वोच्च राजनीतिक परिवार से संबंधित होता ? तो क्या यह संभव था कि दिवंगत व्यक्ति अपने इंसाफ के लिए एक सप्ताह तक सिस्टम के टिका रहता। इसका जवाब शायद नहीं ही बेहतर हो सकता है । दूसरी तरफ देखा जाए तो दिवंगत व्यक्ति का शरीर आखिरकार कितने दिन और समय तक साक्ष्य अथवा सबूत को सुरक्षित रख सकता है। जिससे कि आरोपी ठहराए गए लोगों को उनके कुक्कृत्य अथवा अपराध के मुताबिक कानून में वर्णित सजा के मुताबिक सजा दी जा सके। दिवंगत आईपीएस वाई पूरन कुमार की धर्मपत्नी श्रीमती अमनीत पी कुमार की, सिस्टम दूसरे शब्दों में शासन और प्रशासन से बहुत ही सरल और साधारण मांग है। इस प्रकार की सामान्य और साधारण मांग को पूरा किया जाने में पूरा सिस्टम इतना अधिक बेबस लाचार क्यों ? इस सवाल का जवाब भी अभी तक सवाल ही बना हुआ है । अन्यथा सिस्टम को यह तो जरूर बताना चाहिए कि आखिर दिवंगत आईपीएस अधिकारी वाई पूरन कुमार का ऐसा कौन सा दोष और गंभीर अपराध है? कि सुसाइड किया जाने के एक सप्ताह बाद भी वह किस अपराध की सजा अपना पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार नहीं होने के रूप में भुगतने को मजबूर किया जा रहे हैं।

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